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समवायांग सूत्र
संखेजाओ संग्गहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए णवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, तिण्णि वग्गा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेजाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता। संखेजाणि अक्खराणि जाव एवं चरणकरणपरूवणया आघविजंति, से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ॥९॥ .
कठिन शब्दार्थ - अणुत्तरोववाइयाणं - अनुत्तरौपपातिक जीवों के, परममंगल्लजगहियाणि तित्थयर समोसरणाई - परम मांगलिक जगत् के लिए हितकारी तीर्थङ्करों के समवसरण, समणगणपवरगंधहत्थीणं - सब साधुओं में प्रधान गन्ध हस्ती के समान, थिरजसाणं - स्थिर यश वाले, परिसहसेण्णरिउबलपमद्दणाणं - परीषह रूपी शत्रु सेना को पराजित करने वाले, तवदित्त चरित्त णाण सम्मत्तसार विविहप्पगार वित्थरपसत्थ गुणसंजुयाणं - उत्तम ज्ञान दर्शन चारित्र से युक्त तथा विविध प्रकार के क्षमा आदि उत्तम गुणों से संयुक्त, उत्तमवर तवविसिटु णाणजोगजुत्ताणं - जाति आदि से उत्तम प्रधान तप के धारक, विशिष्ट ज्ञानादि सम्पन्न, अवसेसकम्मविसयविरत्ता - क्षीण प्रायः कर्म वाले और विषय से विरक्त, धम्ममुरालं (उरालं धम्म) - उदार-प्रधान धर्म को, अब्भुति - स्वीकार करते हैं, जिणवयणमणुगयमहियभासिया - जिन वचन के अनुकूल यथार्थ कहने वाले, जिणवराण-हिययेणमणुण्णेत्ता - जिन भगवान् के मार्ग का हृदय से अनुसरण करने वाले, अंतकिरियं काहिंति - अंतक्रिया करेंगे।
भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! अनुत्तरौपपातिकदशा सूत्र में क्या भाव कहे गये हैं ? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र में अनुत्तरौपपातिक जीवों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धि विशेष, भोगों का त्याग, प्रव्रज्या, श्रुतपरिग्रह-शास्त्राभ्यास, उपधानादि तप, दीक्षा पर्याय, पडिमाएँ, संलेखना, भक्तपान का प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, अनुत्तर विमानों में जन्म होना, वहाँ से चव कर उत्तम कुल में जन्म लेना, जिनधर्म की प्राप्ति होना, अन्तक्रिया इत्यादि का वर्णन इस सूत्र में किया गया है। अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र में परम माङ्गलिक, जगत के लिए हितकारी तीर्थङ्कर भगवन्तों के समवसरण का तथा तीर्थङ्कर भगवान् के ३४ अतिशयों का वर्णन किया गया है। सब साधुओं में प्रधान गन्ध हस्ती के समान, स्थिर यश वाले, परीषह रूपी शत्रुओं की सेना को पराजित करने वाले, उत्तम ज्ञान दर्शन चारित्र से युक्त तथा विविध प्रकार के क्षमा आदि उत्तम गुणों से संयुक्त, जाति आदि से उत्तम, प्रधान तप के धारक, विशिष्ट ज्ञानादि सम्पन्न अनगार महा ऋषीश्वर, तीर्थङ्कर भगवान् के शिष्यों का और
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