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समवायांग सूत्र
दुःख भोगते हुए बहुत काल तक परिभ्रमण करना, जियपरिसह - कसायसेण्ण-धिइधणिय-. संजम - उच्छाह णिच्छियाणं- परीषह और कषाय की सेना को जीतने वाले धैर्यशाली तथा उत्साह पूर्वक संयम का पालन करने वाले ।
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भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि अहो भगवन्! ज्ञाताधर्मकथा में क्या भाव फरमाये गये हैं? भगवान् फरमाते हैं कि ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात अर्थात् प्रथम श्रुतस्कन्ध में उदाहरण रूप से दिये गये मेघकुमार आदि के नगर, उद्यान, चैत्य-यक्ष का मन्दिर, वनखण्ड, राजा, मातापिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धि, भोगों का त्याग, प्रव्रज्या, श्रुत (सूत्र) परिग्रह - सूत्रों का ज्ञान, उपधान आदि तप, पर्याय - दीक्षा काल, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान-आहार आदि का त्याग, पादपोपगमन संथारा, देवलोकगमन - देवलोकों में उत्पन्न होना । देवलोकों से चव कर उत्तम कुल में जन्म लेना, फिर बोधिलाभ सम्यक्त्व की प्राप्ति 'होना और अन्त क्रिया आदि का वर्णन किया गया है।
तीर्थङ्कर भगवान् के विनय मूलक धर्म में दीक्षित होने वाले, संयम की प्रतिज्ञा को पालने में दुर्बल बने हुए, तप नियम तथा उपधान तप रूपी रण में संयम के भार से भग्न चित्त बने • हुए घोर परीषहों से पराजित बने हुए ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप मोक्ष मार्ग से पराङ्गमुख बने हुए, तुच्छ विषय सुखों की आशा के वशीभूत एवं मूच्छित बने हुए साधु के विविध प्रकार के आचार से शून्य और ज्ञान दर्शन चारित्र की विराधना करने वाले व्यक्तियों का ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में वर्णन किया गया है और यह बतलाया गया है कि वे इस अपार संसार में नाना दुर्गतियों में अनेक प्रकार का दुःख भोगते हुए बहुत काल तक भव भ्रमण करते रहेंगे ।
परीषह और कषाय की सेना को जीतने वाले, धैर्यशाली तथा उत्साह पूर्वक संयम का पालन करने वाले, ज्ञान दर्शन चारित्र की सम्यक् आराधना करने वाले, मिथ्यादर्शन आदि शल्यों से रहित, मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति करने वाले, धैर्यवान् पुरुषों को अनुपम स्वर्ग, सुखों की प्राप्ति होती है। यह ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में बतलाया गया है। वहाँ देवलोकों में उन मनोज़ दिव्य भोगों को बहुत काल तक भोग कर इसके पश्चात् आयु क्षय होने पर कालक्रम से वहाँ से चव कर उत्तम मनुष्य कुल में उत्पन्न होते हैं फिर ज्ञान दर्शन चारित्र रूप मोक्ष मार्ग का सम्यक् पालन कर मोक्ष को प्राप्त करते हैं, यह ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में बतलाया गया है। यदि कर्मवश कोई मुनि संयम मार्ग से चलित हो जाय तो उसे संयम में स्थिर करने के लिए बोधप्रद - शिक्षा देने वाले संयम के गुण और असंयम के दोष बतलाने वाले देव और मनुष्यों के दृष्टान्त दिये गये हैं और प्रतिबोध के कारणभूत ऐसे वाक्य कहे गये हैं । जिन्हें सुन कर लोक
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