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समवायांग सूत्र
श्रुतपरिग्रह-सूत्रों का पढना, उपधानादि तप करना । श्रावक की ग्यारह पडिमा, उपसर्ग सहन करना, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकों में उत्पन्न होना, वहाँ से चव कर उत्तम मनष्य कल में उत्पन्न होना, फिर बोधि-समकित की प्राप्ति होना । मोक्ष की प्राप्ति होना, इत्यादि बातों का वर्णन किया गया है। उपासकदशा सूत्र में श्रावकों की ऋद्धिविशेष, परिषद्, परिवार, भगवान् महावीर स्वामी के पास विस्तार पूर्वक धर्मश्रवण, बोधिलाभ, सम्यक्त्व की विशुद्धि, धर्म में स्थिरता, मूलगुण उत्तरगुण अर्थात् अणुव्रतों के अतिचार स्थिति विशेष - श्रावकपने की काल मर्यादा और अन्य बातें, ग्यारह पडिमा, अभिग्रह अङ्गीकार करना, उपसर्गों को सहन करना, उपसर्ग रहित होना। विचित्र प्रकार के तप, शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण व्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, अन्तिम समय में मारणान्तिक संलेखना द्वारा आत्मा को भावित करना और अनशन द्वारा बहुत भक्तों का छेदन करके उत्तम देवलोकों में उत्पन्न होना। उन उत्तम देवलोकों में अनुपम दिव्य सुख भोगना, उन उत्तम सुखों को भोग कर क्रम से आयु का क्षय होने पर वहाँ से चव कर उत्तम कुल में उत्पन्न होना, धर्म की प्राप्ति करना, संयम की आराधना करना, कर्म रूपी रज से मुक्त होकर सब दुःखों का क्षय कर अक्षय मोक्षेसुख को प्राप्त करना इत्यादि बातों का वर्णन विस्तार पूर्वक उपासकदशाङ्ग सूत्र में किया गया है। ___ उपासक दशाङ्ग सूत्र में परित्ता वाचना है, संख्याता अनुयोग द्वार हैं। यावत् संख्याता संग्रहणियाँ हैं। उपासकदशाङ्ग सातवाँ अङ्गसूत्र है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दस अध्ययन हैं, दस उद्देशे हैं, दस समुद्देशे हैं, संख्याता लाख पद हैं यानी ग्यारह लाख बावन हजार पद हैं, संख्याता अक्षर हैं यावत् चरणसत्तरि करणसत्तरि की प्ररूपणा की गई है। यह उपासकदशाङ्ग सूत्र का संक्षिप्त विषय वर्णन है ॥ ७ ॥ - विवेचन - उपासकदशा सातवाँ अङ्ग सूत्र है। श्रमणों की अर्थात् साधुओं की सेवा करने वाले उपासक कहे जाते हैं। "दशा" नाम अध्ययन तथा चर्या का है। इस सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के दस श्रावकों के अध्ययन होने से यह उपासकदशा कहा जाता है। इसके प्रत्येक अध्ययन में एक एक श्रावक का वर्णन है। इस प्रकार दस अध्ययनों में दस श्रावकों का वर्णन है। दस श्रावकों के नाम इस प्रकार हैं यथा - १. आनन्द २. कामदेव ३. चुलनीपिता ४. सुरादेव ५. चुल्लशतक ६. कुण्डकोलिक ७. सद्दालपुत्र ८. महाशतक ९. नन्दिनीपिता १०. शालेयिकापिता ।
निर्ग्रन्थ प्रवचनों में उनकी दृढ़ श्रद्धा थी। भगवान् पर उनकी अपूर्व भक्ति थी। प्रभु के वचनों पर उन्हें अपूर्व श्रद्धा थी। गृहस्थावस्था में रहते हुए भी उन्होंने शास्त्रों का अच्छा
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