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भरतादि क्षेत्रों का निर्गम इत्यादि पदार्थों का तथा इसी प्रकार अन्य प्रकार के पदार्थों का इस समवायाङ्ग सूत्र में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है।
. समवायाङ्ग सूत्र की परित्ता वाचना हैं अनन्ता नहीं यावत् यह समवायाङ्ग सूत्र अङ्गों की अपेक्षा चौथा अङ्ग सूत्र है। इसमें एक अध्ययन है, एक श्रुतस्कन्ध है, एक उद्देशनकाल है और एक लाख चंवालीस हजार पद कहे गये हैं। इसमें संख्याता अक्षर हैं यावत् चरण करण की प्ररूपणा से तत्त्वों का वर्णन किया गया है। उपरोक्त प्रकार से समवायाङ्ग सूत्र में पदार्थों का वर्णन किया गया है ॥ ४ ॥
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बारह अंग सूत्र
विवेचन शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! समवाय का क्या स्वरूप है ? उत्तर जीव अजीव आदि पदार्थों का जहाँ एक दो के विभाग से समावेश किया जाय उसका नाम समवाय है । अथवा आत्मादि अनेक प्रकार के पदार्थ जहाँ अभिधेय रूप से मिले हुए हों उसको समवाय कहते हैं। इसमें एक से लेकर एक सौ तक वाले बोल एक एक भेद की वृद्धि करते हुये बतलाये गये हैं । उनको एकोत्तरिक परिवृद्धि कहते हैं । सौ संख्या से ऊपर जो कोटाकोटि तक पदार्थों का विचार किया गया है। उस विचार में जो वृद्धि हुई है वे अनेकोत्तरिक वृद्धि है। यह क्रमशः नहीं हुई है किन्तु अक्रमिक रूप से वृद्धि होती हुई चली गयी है। इसमें एक अध्ययन, एक श्रुतस्कन्ध, एक उद्देशक तथा एक ही समुद्देशक है। समवायाङ्ग सूत्र में एक लाख चौवालीस हजार पद हैं।
नोट - पदों की यह संख्या नंदी सूत्र के अनुसार है। वहाँ आचाराङ्ग सूत्र से आगे दुगुना - दुगुना करते हुए यह संख्या प्राप्त होती है। क्योंकि आचाराङ्ग सूत्र की पद संख्या १८००० बतलाई गयी है। यह पूरे समवायाङ्ग सूत्र में इतने पद थे, ऐसी सम्भावना है। आजकल जितना उपलब्ध है उसमें पदों की संख्या इतनी नहीं है।
से किं तं वियाहे ? वियाहेणं ससमया वियाहिज्जंति, परसमया वियाहिज्जंति, ससमय परसमया वियाहिज्जंति, जीवा वियाहिज्जंति, अजीवा वियाहिज्जंति, जीवाजीवा वियाहिज्जति लोए वियाहिज्जइ, अलोए वियाहिज्जइ, लोयालोए वियाहिज्जइ । वियाहेणं णाणाविह सुर रिंद रायरिसि विविह संसइय पुच्छियाणं जिणेणं वित्थरेण भासियाणं देव्व गुण खेत्त पज्जव पएस परिणाम जहत्थिय भाव अणुगम णिक्खेव णय प्पमाण सुणिउणोवक्कम विविहप्पयारपगड पयासियाणं, लोयालोयपयासियाणं संसारसमुद्दरुंदउत्तरण समत्थाणं सुरवइ संपूजियाणं, भविय जणपय हिययाभिणंदियाणं, तमरय
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