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समवायांग सूत्र
ब्रह्मचारी, दिया - दिवस, रत्तिं-राओ - रात्रि, असिणाई - स्नान नहीं करने वाला, वियडभोजी - विकटभोजी-दिन में भोजन करने वाला, मोलिकडे - मौलिकृत, परिण्णाएपरिज्ञात (त्याग), समणभूए - श्रमणभूत - साधु के समान, जोइसते - ज्योतिष चक्र का अंत, धरणियलाओ - पृथ्वीतल से, सिहरे - शिखर पर्यन्त।
भावार्थ - उपासक - साधुओं की उपासना यानी सेवा करने वाला श्रमणोपासक (श्रावक) कहलाता है उसकी ग्यारह पडिमाएं यानी प्रतिज्ञाएं (अभिग्रह विशेष) कही गई हैं वे ये हैं - १. दर्शनश्रावक - यह पहली पडिमा है, इसमें अतिचार रहित शुद्ध सम्यक्त्व का पालन किया जाता है। इसका समय एक मास तक है। २. कृतव्रतकर्मा - दूसरी पडिमा में श्रावक पांच अणुव्रत और तीन गुणव्रतों को धारण करता है। इसका समय दो मास है। ३. कृतसामायिक - तीसरी पडिमा में बत्तीस दोष टाल कर निश्चित समय पर शुद्ध सामायिक और देशावकाशिक व्रतों का सम्यग् रूप से पालन किया जाता है। इसके लिए तीन मास का समय है। ४. पौषधोपवासनिरत - चौथी पडिमा में अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या को यानी महीने में छह पौषधोपवास किये जाते हैं। इसका समय चार मास है। ५. दिवाब्रह्मचारी रात्रिपरिमाण कृत - पांचवीं पडिमा में दिन में ब्रह्मचारी रहता है और रात्रि में मैथुन की मर्यादा करता है। इसका समय कम से कम एक दिन, दो दिन या तीन दिन और अधिक से अधिक पांच मास तक का है। ६. दिवारात्रि ब्रह्मचारी - छठी पडिमा में दिन और रात्रि में पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। इस पडिमा का धारक श्रावक स्नान नहीं करता है। विकटभोजी अर्थात् वह दिन में ही भोजन करता है, रात्रि में चारों आहार का त्याग करता है। मौलिकृत अर्थात् वह धोती की लांग नहीं देता है किन्तु खुली लांग रखता है। इस पडिमा का समय कम से कम एक, दो या तीन दिन है और अधिक से अधिक छह मास है। ७. सचित्त परिज्ञात - सातवीं पडिमा में सचित्त का सर्वथा त्याग किया जाता है। इसका उत्कृष्ट समय सात मास है। ८. आरम्भ परिज्ञात - आठवीं पडिमा में श्रावक आरम्भ का त्याग कर देता है अर्थात् स्वयं किसी प्रकार का आरम्भ नहीं करता है। इसका उत्कृष्ट समय आठ मास का है। ९. प्रेष्य परिज्ञात - नवमी पडिमा में श्रावक दूसरों से आरम्भ करवाने का त्याग करता है। इसका उत्कृष्ट समय नौ मास है। १०. उद्दिष्ट भक्त परिज्ञात - दसवी पडिमा में श्रावक उद्दिष्ट भक्त का त्याग कर देता है। वह अपने निमित्त बनाये हुए मादि को ग्रहण नहीं करता है। वह उस्तरे से मुण्डन करा देता है अथवा शिखा रखता है। इसका उत्कृष्ट समय दस मास है। ११. श्रमणभूत - ग्यारहवीं पडिमा में वह पडिमाधारी
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