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समवाय १७ भननननननननननननन
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१५. दिशा आदि - मेरु पर्वत समतल भूमि पर १० हजार योजन का चौड़ा है। इसके ठीक बीच में आठ रुचक प्रदेश है। वहीं से दिशा और विदिशा निकली हैं। इसीलिये मेरु पर्वत को सब दिशाओं का आदि (प्रारम्भक) कहते हैं।
१६. अवतंस यह सब पर्वतों में श्रेष्ठ होने के कारण इसको अवतंस (शेखरआभूषण) कहते हैं। यह मेरु पर्वत के सोलह नामों का अर्थ कहा गया है।
लवण समुद्र २ लाख योजन का लंबा चौड़ा है। जम्बूद्वीप की जगती से लवण समुद्र में ९५ हजार योजन जाने पर तथा धातकीखण्ड की जगती से ९५ हजार योजन लवण समुद्र में आने पर बीच में १० हजार योजन की पानी की सतह से नगर के कोट की तरह १६ हजार योजन ऊपर जल की वृद्धि हुई है। जिसको उगमाला (उदकमाला) कहते हैं । इसी जगह १० हजार योजन में लवण समुद्र १ हजार योजन ऊंडा है। बाकी ९५ हजार योजन में तो गोतीर्थ (जिस प्रकार पानी पीने के लिये गायें तालाब में उतरती हैं उस ढालू- ढलान की तरह) है।
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PREDELILLION
सतरहवां समवाय
सत्तरसविहे असंजमे पण्णत्ते तंजहा- पुढवीकाय असंजमे, आउकाय असंजमे, ते काय असंजमे, वाउकाय असंजमे, वणस्सइकाय असंजमे, बेइंदिय असंजमे, तेइंदिय असंजमे, चउरिदिय असंजमे, पंचिंदिय असंजमे, अजीवकाय असंजमे, पेहा असंजमे, उवेहा असंजमे, अवहट्टु असंजमे, अप्पमज्जणा असंजमे, मण असंजमे, वइ असंजमे, काय असंजमे । सत्तरसविहे संजमे पण्णत्ते तंजहा - पुढवीकाय संजमे जाव काय संजमे । माणुस्सुत्तरे णं पव्वए सत्तरस-एक्कवीसे जोयण सए उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ते । सव्वेसिं वि वेलंधर अणुवेलंधर णागराईणं आवासपव्वया सत्तरस एक्कवीसाइं जोयण सयाई उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । लवणे णं समुद्दे सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते । इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ साइरेगाई सत्तरस जोयणसहस्साइं उड्डुं उप्पइत्ता तओ पच्छा चारणाणं तिरिया गई पवत्तइ । चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो तिगिंछिकूडे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ते । बलिस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो रुयगिंदे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयण सयाई उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ते । सत्तरस
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