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समवायांग सूत्र
सूर्य के १८४ मण्डल हैं। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब सबसे आभ्यन्तर मण्डल में । प्रविष्ट सूर्य अर्थात् कर्क संक्राति के दिन २४ अङ्गल की पोरिसी छाया होती है फिर सूर्य आभ्यन्तर मण्डल से दूसरे मण्डल में आ जाता है। यही बात उत्तराध्ययन सूत्र के २६वें. अध्ययन में भी कही है। "आसाढे मासे दुपया" अर्थात् आषाढ मास में दो पैर छाया प्रमाण की पोरिसी होती है। __गङ्गा नदी और सिन्धु नदी तथा रक्ता और रक्तवती नदी का प्रवाह चौबीस कोस से कुछ अधिक है। यहाँ पर प्रवाह का अर्थ यह समझना चाहिये कि जिस पद्म द्रह आदि से नदियाँ निकलती है वहाँ चौबीस कोस से कुछ अधिक विस्तार है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में तो इनका विस्तार पच्चीस कोस लिखा है। उसको पाठान्तर या मतान्तर समझना चाहिये ।
पच्चीसवां समवाय पुरिम पच्छिमगाणं तित्थयराणं पंचजामस्स पणवीसं भावणाओ पण्णत्ताओ तंजहा - ईरियासमिई, मणगुत्ती, वयगुत्ती, आलोयभायण-भोयणं, आदाण-भंडमत्तणिक्खवणा समिई ५, अणुवीइभासणया, कोहविवेगे, लोभविवेगे, भयविवेगे; हासविवेगे ५, उग्गहअणुण्णवणया, उग्गहसीमजाणणया,,सयमेव उग्गहं अणुगिण्हणया, साहम्मिय उग्गहं अणुण्णविय परिभुंजणया, साहारण भत्तपाणं अणुण्णविय पडिभुंजणया ५, इत्थी-पसुपंडगसंसत्तग सयणासणवजणया, इत्थीकहा विवजणया इत्थीणं इंदियाणमालोयण वजणया पुव्वरयपुव्वकीलियाणं अणणुसरणया पणीताहार विवजणया, सोइंदिय रागोवरई चक्खुइंदिय (चक्खिदिय) रागोवरई घाणिंदिय रागोवरई, जिब्भिंदिय रागोवरई, फासिंदिय रागोवरई ५। मल्ली णं अरहा पणवीसं धणूई उड्डे उच्चत्तेणं होत्था। सव्वे वि दीहवेयड्ड पव्वया पणवीसं जोयणाणि उर्दू उच्चत्तेणं पण्णत्ता, पणवीसं पणवीसं गाउयाणि उव्वेहेणं पण्णत्ता। दोच्चाए पुढवीए पणवीसं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। आयारस्स णं भगवओ सचूलियागस्स पणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा
सत्थपरिण्णा लोगविजओ, सीयोसणीयं सम्मत्तं। आवंति धूयविमोह, उवहाणसुयं महापरिणा॥
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