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समवाय ७२
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देने की कला, ६५. हस्ति शिक्षा - हाथी को शिक्षा देने की कला, ६६. धनुर्वेद-धनुष चलाने की कला, ६७. चांदी, सोने, मणि तथा दूसरी दूसरी धातुओं का पाक-भस्म बनाने की कला, ६८. बाहुयद्ध, दण्डयुद्ध, मुष्टियुद्ध अस्थियुद्ध, सामान्य युद्ध, विशेष युद्ध, मल्ल युद्ध आदि की कला, ६९. सूत्र, नालिका वर्तुल, धर्म और चर्म को प्रेरित करने की कला, ७०. पत्र छेदन कटक छेदन की कला, ७१. मूछित हुए को मंत्र शक्ति से सजीव बनाने की कला तथा नस आदि दबा कर निर्जीव सरीखा बना देने की कला ७२. शकुन रुत - पक्षियों के स्वर को जानने की कला ।
सम्मूच्छिम खेचर तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय की उत्कृष्ट स्थिति बहत्तर हजार वर्ष की कही
गई है॥७२॥
- विवेचन - स्वर्णकुमार भवनपति देवों के दक्षिण निकाय में ३८ लाख विमान हैं और उत्तर निकाय में चौतीस लाख विमान है। इस प्रकार दोनों निकायों के मिला कर बहत्तर लाख विमान होते हैं। लवण समुद्र में सोलह हजार योजन ऊँची और दस हजार योजन चौड़ी उदक माला है। उसके ऊपर दो कोस की वेला चढ़ती है। उस धातकी खण्ड द्वीप की तरफ की बाहरी वेला को बहत्तर हजार नागकुमार देव धारण करते हैं अर्थात् रोक कर रखते हैं।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी तीस वर्ष गृहस्थ अवस्था में रहे। साढ़े बारह वर्ष और एक पक्ष छदस्थ अवस्था में रहे। तीस वर्ष भवस्थ केवली रहे। इस प्रकार सर्व आयुष्य . बहत्तर वर्ष का होता है। किन्तु बयालीसवें समवाय में बताया है कि भगवान् का श्रमण पर्याय (दीक्षा) बयालीस वर्ष से कुछ अधिक था। इस हिसाब से भगवान् का सर्व आयुष्य बहत्तर वर्ष से कुछ अधिक होता है। किन्तु यहाँ बहत्तर वर्ष ही बतलाया है। इससे यह मालूम होता है कि यहत्तर से उपर का काल अल्प होने से यहाँ गौण (नगण्य) किया गया है। भगवान् महावीर स्वामी के नौवें गणधर अचल भ्राता छियालीस वर्ष गृहस्थ अवस्था में रहे २६ वर्ष श्रमण पर्याय का पालन किया (बारह वर्ष छास्थ चौदह वर्ष केवली) इस प्रकार सर्व आयुष्य बहत्तर वर्ष का भोग कर सिद्ध हुए। यहाँ पर ७२ कलाएँ बतलाई गयी है किन्हीं किन्हीं प्रतियों में इनका क्रम आगे पीछे पाया जाता है। इसके सिवाय और भी जो कलाएँ हों उन सब का अन्तर्भाव इन ७२ कलाओं में हो जाता है। ७२ कलाओं का अर्थ भावार्थ में दे दिया गया है।
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