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समवाय ८५
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पच्चासीवां समवाय आयारस्स णं भगवओ सचूलियागस्स पंचासीइ उद्देसणकाला पण्णत्ता। धायइसंडस्स णं मंदरा पंचासीइ जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता एवं पुक्खरवरदीवड्ढे वि। रुयए णं मंडलियपव्वए पंचासीइ जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता। णंदणवणस्स णं हेट्ठिल्लाओ चरमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेढिल्ले चरमंते एस णं पचासीइ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥८५ ॥
कठिन शब्दार्थ - पंचासीइ - ८५, आयारस्स - आचारांग के, धायइसंडस्स - धातकीखंड के, मंदरा - मेरु पर्वत, सव्वग्गेणं - सब मिला कर, रुयए मंडलिय पव्वए - रुचक द्वीप का मांडलिक पर्वत । - भावार्थ - चूलिका सहित आचारांग सूत्र के ८५ उद्देशन काल कहे गये हैं। आचारांग सूत्र के दो श्रुतस्कन्ध हैं, उनमें से प्रथम श्रुतस्कन्ध के ९ अध्ययनों के ५१ उद्देशे हैं। दूसरे श्रुतस्कन्ध की पहली और दूसरी चूलिका में सात सात अध्ययन हैं। उनमें से पहली चूलिका के सात अध्ययनों के २५ उद्देशे हैं। दूसरी के सात, तीसरी में एक और चौथी में एक, ये सब मिला कर ८५ हुए। धातकीखण्ड के मेरु पर्वत सब मिला कर ८५ हजार योजन के हैं अर्थात् १००० योजन जमीन में ऊंडे हैं और ८४००० योजन ऊपर हैं, ये सब मिला कर ८५००० योजन हुए। इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के भी दोनों मेरु पर्वत जान लेना चाहिये। तेरहवें रुचक द्वीप का माण्डलिक पर्वत एक हजार योजन जमीन में है और चौरासी हजार योजन जमीन के ऊपर है सब मिला कर ८५ हजार योजन का कहा गया है। नन्दन वन के सब से नीचे के चरमान्त से सौगन्धिक नामक आठवें रत्नकाण्ड के नीचे का चरमान्त तक ८५ सौ योजन का अन्तर कहा गया हैं ॥ ८५ ॥ . विवेचन - चूलिका सहित आचाराङ्ग सूत्र के ८५ उद्देशन काल होते हैं। जिनका विवरण भावार्थ में दे दिया गया है।
धातकी खण्ड में दो मेरु पर्वत हैं जो एक एक हजार योजन के धरती में ऊंड़े हैं और ८४ हजार योजन धरती से ऊपर हैं। इस प्रकार कुल ८५००० योजन के हैं। इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के भी दोनों मेरुपर्वत जान लेने चाहिये। रुचक नामक तेरहवें द्वीप का अन्तर्वर्ती गोलाकार मांडलिक पर्वत भी ८५००० योजन कहा गया है।
मेरु पर्वत के भूमितल से नन्दनवन ५०० योजन की ऊँचाई पर स्थित है तथा मेरु पर्वत
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