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समवायांग सूत्र MERONIRNATRINowwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwseem के भूमि तल से नीचे पहली नरक का सौगन्धिक काण्ड का तलभाग ८००० योजन है। इस प्रकार सौगन्धिक काण्ड का अधस्तन तलभाग (८०००+५००=८५००) पचासी सौ योजन अन्तर वाला सिद्ध हो जाता है।
छियासीवां समवाय सुविहिस्स णं पुष्पदंतस्स अरहओ छलसीइ गणा, छलसीइ गणहरा होत्था। सुपासस्स णं अरहओ छलसीइ वाइसया होत्था। दोच्चाए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभागाओ दोच्चस्स घणोदहिस्स हेट्ठिले चरमंते एस णं छलसीइ जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥८६ ॥
कठिन शब्दार्थ - छलसीइ - ८६, वाइ - वादी।
भावार्थ - नववें तीर्थङ्कर श्री सुविधिनाथ स्वामी अपरनाम श्री पुष्पदन्त स्वामी के ८६ गण और ८६ गणधर थे। सातवें तीर्थङ्कर श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी के ८६०० वादी थे। शर्कराप्रभा नामक दूसरी नरक के मध्यभाग से दूसरे घनोदधि का चरमान्त तक ८६ हजार योजन का . अन्तर कहा गया है। ८६॥
विवेचन - नववें तीर्थङ्कर श्री सुविधिनाथ (पुष्पदन्त) स्वामी के ८८ गण और ८८ गणधर थे। ऐसा आवश्यक सूत्र में बतलाया गया है। सो यह मतान्तर मालूम होता है।
दूसरी पृथ्वी शर्करा प्रभा है। उसकी मोटाई १ लाख ३२ हजार योजन है। उसका आधा ६६ हजार योजन होता है उसके अन्दर २० हजार योजन का घनोदधि मिलाने से ८६ हजार योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है।
सित्यासीवां समवाय मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवास पव्वयस्स पच्चथिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ दगभासस्स आवास पव्ययस्स उत्तरिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीई जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं मंदरस्स पच्चथिमिल्लाओ चरमंताओ संखस्स आवास पव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते, एवं चेव मंदरस्स उत्तरिल्लाओ चरमंताओ दगसीमस्स आवास पव्क्यस्स दाहिणिल्ले
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