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प्रकीर्णकसमवाय
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उक्कोसिया वाईसंपया होत्था। अभिचंदे णं कुलगरे छ धणुसयाई उड्डे उच्चत्तेणं होत्था। वासुपुज्जे णं अरहा छहिं पुरिससएहिं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ॥६०० ॥
· कठिन शब्दार्थ - समधरणितले - समधरणीतल-पृथ्वी तल तक, छ जोयणसयाई - छह सौ योजन।
भावार्थ - सनत्कुमार और माहेन्द्र नामक तीसरे और चौथे देवलोक में विमान ६०० योजन ऊंचे कहे गये हैं। चुल्लहिमवंत कूट के ऊपर के चरमान्त से चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के पृथ्वीतल तक ६०० योजन का अन्तर कहा गया है अर्थात् १०० योजन का चुल्लहिमवंत पर्वत ऊंचा है और उस पर ५०० योजन का कूट है। इसी तरह शिखरी कूट का अन्तर जानना चाहिए। तेईसवें तीर्थङ्कर पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के मनुष्य और देवों की सभा में वाद विवाद में - शास्त्रार्थ में पराजित न होने वाले वादियों की उत्कृष्ट संख्या ६०० थी। इस अवसर्पिणी काल के चौथे कुलकर अभिचन्द्र के शरीर की ऊंचाई ६०० धनुष की थी। बारहवें तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य स्वामी ६०० पुरुषों के साथ मुण्डित होकर गृहवास को छोड़ कर प्रव्रजित हुए ॥ ६०० ॥
विवेचन - इस अवसर्पिणी काल में सात कुलकर हुए हैं। उनका नाम इस प्रकार हैं - १. विमलवाहन २. चक्षुष्मान, ३. यशस्वान ४. अभिचन्द्र ५. प्रश्रेणी ६. मरुदेव ७. नाभि। अभिचन्द्र कुलकर के शरीर की ऊंचाई ६५० धनुष थी।
बंभलंतएसु कप्पेसु विमाणा सत्त सत्त जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त जिणसया होत्था। समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त वेउव्वियसया होत्था। अरिट्ठणेमी णं अरहा सत्तवाससयाई देसूणाई केवल परियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्व दुक्खप्पहीणे । महाहिमवंत कूडस्स णं उवरिल्लाओ चरमंताओ महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स समधरणितले एस णं सत्त जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते एवं रुप्पि कूडस्स वि ॥७०० ॥
कठिन शब्दार्थ - सत्त वाससयाई देसूणाई - देशोन ७०० वर्ष, केवलि परियागं - . केवली पर्याय।
भावार्थ - ब्रह्मलोक और लान्तक, इन पांचवें और छठे देवलोक में विमान ७००-७०० . योजन के ऊंचे कहे गये हैं। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ७०० केवलज्ञानी साधु थे।
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