________________
२८२
समवायांग सूत्र
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ७०० वैक्रिय लब्धिधारी साधु थे। बाईसवें तीर्थङ्कर श्री अरिष्ट नेमिनाथ स्वामी देशोन ७०० वर्ष अर्थात् ५४ दिन कम ७०० वर्ष केवली पर्याय का पालन करके सिद्ध बुद्ध यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। महाहिमवंत कूट के ऊपर के चरमान्त से महाहिमवंत वर्षधर पर्वत के समतल भूमिभाग तक ७०० योजन का अन्तर कहा गया है अर्थात् महाहिमवंत पर्वत २०० योजन का ऊंचा है और उस पर ५०० योजन का कूट है, यह सब मिला कर ७०० योजन होता है। इसी तरह रुक्मीकूट के ऊपरी चरमान्त से रुक्मीपर्वत के समभूमि भाग तक ७०० योजन का अन्तर कहा गया है ॥ ७०० ॥. ... ...
विवेचन - जम्बूद्वीप में छह वर्षधर पर्वत हैं। मेरु पर्वत से दक्षिण में चूलहिमवान्,' महाहिमवान् और निषध ये तीन पर्वत हैं। इसी प्रकार मेरु पर्वत से उत्तर में शिखरी पर्वत, रुक्मी पर्वत और नील पर्वत। दक्षिण के पर्वतों की जिनती ऊँचाई है उतनी ही उत्तर के पर्वतों की भी है। इसलिये महाहिमवान् और रुक्मी दोनों पर्वतों की ऊँचाई सात-सात सौ योजन हैं।
महासुक्क सहस्सारेसु दोसु कप्पेसु विमाणा अट्ट जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमे कंडे अट्ठसु जोयणसएस वाणमंतर भोमेज विहारा पण्णत्ता। समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभदाणं उक्कोसिया' अणुत्तरोववाइयसंपया होत्था। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ अट्ठहिं जोयणसएहिं सूरिए चारं चरइ । अरहओ णं अरिडणेमिस्स अट्ठसयाई वाईणं सदेवमणुयासुरम्म लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाईसंपया होत्था ॥ ८०० ॥ ___कठिन शब्दार्थ - वाणमंतर भोमेज विहारा - वाणव्यन्तर-भौमेय विहार-वाणव्यंतर देवों के विहारनगर - क्रीडा स्थान, अणुत्तरोववाइयसंपया - अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले श्रमणों की संपदा, गइकल्लाणाणं - जिनकी गति कल्याणकारी एवं उत्तम थी, ठिकल्लाणाणं - जिनकी स्थिति कल्याणकारी एवं उत्तम थी, आगमेसिभहाणं - आगामी भद्रक-आगामी भव में मोक्ष प्राप्त करने वाले, वाईणं वाईसंपया - वादियों की वादी संपदा।
भावार्थ - महाशुक्र और सहस्रार नामक सातवें और आठवें, इन दो देवलोकों में विमान ८०० योजन के ऊंचे कहे गये हैं। इस रत्नप्रभा पृथ्वी का प्रथम रत्नकाण्ड जो कि एक हजार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org