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समवायांग सूत्र
बृहस्पति का विमान आता है। ८९७ योजन पर मंगल का विमान और ९०० योजन की ऊंचाई पर शनैश्चर का विमान आता है। .... जो तथाकथित वैज्ञानिक लोग यह कहते हैं कि - हम चन्द्र विमान पर तो पहुँच गये हैं पर तारा विमान तो अभी बहुत दूर हैं। यह उन वैज्ञानिकों का कथन जैन सिद्धान्त से मेल नहीं खाता है। क्योंकि सर्व प्रथम तारामण्डल, फिर सूर्यमण्डल आता है फिर चन्द्रमण्डल आता है। अतः वैज्ञानिक किसी चमकीले पहाड पर पहुँचे होंगे, ऐसा अनुमान है। क्योंकि वहीं पर मिट्टी मिल सकती है। चन्द्रमण्डल तो रत्नों का है वहा पर मिट्टी नहीं है। • आणय पाणय आरण अच्चएसु कप्पेसु विमाणा णव णव जोयणसयाई उडूं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। णिसढकूडस्स णं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ णिसढस्स वासहरपव्वयस्स समधरणितले एस णं णव जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते, एवं णीलवंत कूडस्स वि। विमलवाहणे णं कुलगरे णव धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमि भागाओ णवहिं जोयणसएहिं सव्वुवरिमे तारारूवे चारं चरइ। णिसढस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरिल्लाओ सिहरतलाओ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं णव जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते, एवं णीलवंतस्स वि ॥९०० ॥ ___ कठिन शब्दार्थ - णिसढ कूडस्स - निषध कूट के, उवरिल्लाओ सिहरतलाओ - ऊपर के शिखर तल से ।
भावार्थ - आणत, प्राणत, आरण और अच्युत नामक नववें, दसवें, ग्यारहवें और बारहवें इन चार देवलोकों में विमान ९००-९०० योजन के ऊंचे कहे गये हैं। निषध कूट के ऊपर के शिखर से निषध पर्वत के समभूमिभाग तक ९०९ योजन का अन्तर कहा गया है अर्थात् निषध पर्वत समतल भूमि से ४०० योजन ऊंचा है और उस पर ५०० योजन का कूट है। इस प्रकार समतल भूमिभाग से कूट के शिखर तक ९०० योजन का अन्तर होता है। इसी प्रकार नीलवंत कूट के शिखर का इस समतल भूमि भाग से ९०० योजन का अन्तर है। इस अवसर्पिणी काल में प्रथम कुलकर श्री विमलवाहन के शरीर की ऊंचाई ९०० धनुष की थी। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल भूमि भाग से ९०० योजन ऊपर सर्वोपरिम-ऊपर का तारामण्डल
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