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समवाय ९५
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भावार्थ - सातवें तीर्थङ्कर श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी के ९५ गण और ९५ गणधर थे। इस . जम्बूद्वीप के चरमान्त से पूर्वादि चारों दिशाओं में लवणसमुद्र में पंचानवें हजार-पंचानवें हजार योजन जाने पर चार महापाताल कलश हैं उनके नाम इस प्रकार हैं- बडवामुख, केतु, यूपक और ईश्वर। लवण समुद्र के दोनों तरफ यानी जम्बूद्वीप से ९५ हजार योजन लवणसमुद्र में जाने पर अथवा धातकीखण्ड द्वीप से ९५ हजार योजन लवणसमुद्र में इधर आने पर बीच में दस हजार योजन का डगमाला (उदकमाला) आता है वह एक हजार योजन का ऊंडा है। उस दगमाला से जम्बूद्वीप की तरफ आवे अथवा धातकीखण्ड द्वीप की तरफ जावे तो ९५ अंगुल पर एक अंगुल, ९५ हाथ पर एक हाथ, ९५ योजन पर एक योजन, ९५ हजार योजन पर एक हजार योजन ऊंडाई कम होती जाती है और समुद्र का पानी और जमीन बराबर हो जाती है। इसी प्रकार जम्बूद्वीप के किनारे से लवण समुद्र में जावे अथवा धातकी खण्ड द्वीप के किनारे से लवण समुद्र में आवे तो ९५ योजन पर एक योजन और ९५ हजार योजन पर एक हजार योजन ऊंचाई बढ़ती जाती है। सतरहवें तीर्थङ्कर श्री कुन्थुनाथ स्वामी ९५ हजार वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। भगवान् महावीर - स्वामी कें सातवें गणधर स्थविर श्री मौर्यपुत्र स्वामी ९५ वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए । । ९५ ॥
विवेचन - लवण समुद्र दो लाख योजन का विस्तार वाला है। उसका जल गोतीर्थ के समान है। अर्थात् जैसे- गाय पानी पीने के लिये तालाब में जाती है। तालाब की भूमि ढालू ( ढलान वाली) होती है। इसलिये गाय सुख पूर्वक ढालू जगह में नीचे उतर कर पानी पी लेती है । लवण समुद्र का पानी भी इसी तरह ढलता हुआ आगे बढ़ता है। समतल भूमि पर . पानी भूमि के बराबर होता है फिर आगे क्रमशः बढ़ता जाता है । जम्बू द्वीप की जगती से ९५ हजार योजन जाने पर तथा उधर से धातकी खण्ड द्वीप से ९५ हजार योजन इधर आने पर गोतीर्थ की तरह पानी ढलाऊ होता गया है। बीच में दस हजार योजन एक सरीखा समान है और उसकी ऊंडाई एक हजार योजन है । गोतीर्थ की तरह घटने का तरीका भावार्थ में बतला दिया गया है। बीच में दस हजार की चौड़ाई जहाँ है वहाँ एक हजार योजन का ऊण्डा है। वहाँ चारों दिशाओं में चार महा पाताल कलशे आये हुए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं। १. वलयामुख (वडवामुख) २. केतुक ३. यूपक ४. ईश्वर । ये प्रत्येक गोस्तनाकार एक लाख योजन के ऊंडे हैं। उनके नीचे के तीसरे भाग में सिर्फ वायु है । बीच के भाग में वायु और पानी दोनों सम्मिलित रूप से हैं और पहले भाग में अर्थात् ऊपर के भाग में केवल पानी है।
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