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समवायांग सूत्र
णं भगवओ महावीरस्स तिणिण सयाई चोहसपुव्वीणं होत्था। पंचधणुसइयस्स णं अंतिमसारीरियस्स सिद्धिगयस्स साइरेगाई तिण्णि धणुसयाइं जीवप्पएसोगाहणा
पण्णत्ता ।
कठिन शब्दार्थ - विमाणपागारा विमान प्राकार (विमानों के कोट), अंतिमसारीरियस्सअन्तिम शरीरी - चरम शरीरी जीवों के, सिद्धिगयस्स मोक्ष जाने पर, जीवप्पएसोगाहणाजीव प्रदेशों की अवगाहना, साइरेगाईं - कुछ अधिक ।
भावार्थ - पांचवें तीर्थङ्कर श्री सुमतिनाथ भगवान् के शरीर की ऊंचाई ३०० धनुष की थी। बाईसवें तीर्थङ्कर श्री अरिष्टनेमिनाथ स्वामी ३०० वर्ष कुमारावस्था में रह कर मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुए - दीक्षा अङ्गीकार की । वैमानिक देवों के विमानप्राकार-विमानों के कोट ३००-३०० योजन के ऊंचे कहे गये हैं। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ३०० चौदह पूर्वधारी थे। जिन चरमशरीरी जीवों के शरीर की ऊंचाई पांच सौ धनुष होती है । मोक्ष में जाने पर उन जीवों के जीव प्रदेशों की अवगाहना ३०० धनुष से अधिक होती है अर्थात् ३३३ धनुष ३२ अंगुल (एक हाथ आठ अङ्गुल) प्रमाण होती है ॥ ३०० ॥
विवेचन - बाईसवें तीर्थङ्कर श्री अरिष्टनेमि भगवान् ३०० सौ वर्ष कुमार अवस्था में रहे । विवाह किये बिना ही दीक्षा अंगीकार की । ५४ दिन छद्मस्थ रहें ७०० सौ वर्ष श्रमण पर्याय का पालन कर एवं एक हजार वर्ष का सम्पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त हुए।
उसी भव में मोक्ष जाने वाले जीव चरम शरीरी कहलाते हैं। चरम शरीरी जीव के शरीर की जिनती ऊँचाई होती है तेरहवें गुणस्थान के अन्त में सूक्ष्म क्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान के बल से शरीर के रन्ध्रों (छिद्रों) को पूर्ण करने से शरीर का तीसरा भाग छोड़ कर अर्थात् कम करके आत्म प्रदेश घन हो जाते हैं अर्थात् शरीर की जितनी ऊँचाई थी उसका एक त्रिभाग कम करके, दोत्रि भाग शरीर के आत्मप्रदेशों की ऊंचाई रह जाती है। इस प्रकार सिद्धों की अवगाहना के ३ भेद होते हैं यथा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट ५०० धनुष की अवगाहना वाले और जघन्य दो हाथ की अवगाहना वाले सिद्ध हो सकते हैं।
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दो हाथ से कुछ अधिक अवगाहना वाले और ५०० धनुष से कुछ कम अवगाहना वाले सब चरम शरीरी जीव मध्यम अवगाहना वाले कहलाते हैं । किन्तु इतनी विशेषता है कि तीर्थङ्कर भगवान् सात हाथ की अवगाहना से कम नहीं होते । इस प्रकार जघन्य अवगाहना दो भेद हैं। सामान्य केवली की अपेक्षा सिद्धों की जघन्य अवगाहना एक हाथ आठ
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