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समवायांग सूत्र
भावार्थ - दशदशमिका भिक्षुप्रतिमा १०० एक सौ दिनों में ५५० भिक्षा की दत्तियों से सूत्रानुसार पूर्ण यावत् आराधित होती है। पहले दस दिन तक एक दत्ति आहार की और एक दत्ति पानी की ली जाती है। दूसरे दस दिन तक दो दत्ति आहार की और दो दत्ति पानी की ली जाती है। इस तरह क्रम से बढ़ाते हुए दसवें दस दिन दस दत्ति आहार की और दस दत्ति पानी की ली जाती है । इस तरह सब मिला कर १०० दिन और ५५० भिक्षा की दत्तियाँ होती हैं । शतभिषक् नक्षत्र एक सौ तारा वाला कहा गया है। नववें तीर्थङ्कर सुविधिनाथ स्वामी अपर नाम श्री पुष्पदंत स्वामी का शरीर एक सौ धनुष ऊंचा था। पुरुषों में आदरणीय तेईसवें तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथ स्वामी एक सौ वर्ष की सम्पूर्ण आयु भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए। ये ३० वर्ष गृहस्थवास में रहे और ७० वर्ष साधु पर्याय में रहे। यह सब मिला कर १०० वर्ष की आयु होती है। इसी तरह श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पांचवें गणधर श्री सुधर्मास्वामी भी १०० वर्ष की सम्पूर्ण आयु भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त हुए। ये ५० वर्ष गृहस्थवास में रहे, ४२ वर्ष छद्मस्थ अवस्था में और ८ वर्ष केवलिपर्याय में रहे ये सब मिला कर १०० वर्ष की सम्पूर्ण आयु होती है। जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड और अर्द्धपुष्कर द्वीप के सब दीर्घ वैताढ्य पर्वत १००-१०० गाऊ के ( २५ योजन के ) ऊंचे कहे गये हैं । सब क्षेत्रों के चुल्लहिमवंत और शिखरी पर्वत १०० - १०० योजन के ऊंचे और १००-१०० गाऊ (कोस) के ऊंडे कहे गये हैं। सब कञ्चन पर्वत १०० - १०० योजन के ऊंचे कहे गये हैं और १०० - १०० गाऊ (कोस) के ऊंडे कहे गये हैं तथा मूल में १००१०० योजन के चौड़े कहे गये हैं ॥ १०० ॥
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यहाँ तक क्रमशः एक एक बढाते हुए १ से १०० तक समवाय कहे गये हैं । अब आगे फुटकर समवाय कहे जाते हैं -
विवेचन - तेईसवें तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथ स्वामी ३० वर्ष गृहस्थ अवस्था में रह कर दीक्षा अंगीकार की । ७० वर्ष दीक्षा पालन की । ८४ दिन छद्मस्थ, इस प्रकार १०० वर्ष की आयु पूर्ण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए । देवकुरु उत्तरकुरु में क्रमशः व्यवस्थित पांच महा हृद (द्रह - सरोवर) हैं उन हृदों के दोनों तरफ १० - १० काञ्चनक पर्वत हैं। इस प्रकार जम्बूद्वीप में कुल मिलाकर २०० काञ्चनक पर्वत हैं। पांच हृदों (द्रहों) के नाम इस प्रकार हैं१. नीलवंत द्रह २. ऐरावण द्रह ३. उत्तरकुरु द्रह ४. चंद द्रह ५. माल्यवन्त द्रह । इसी प्रकार देवकुर के भी पांच द्रह हैं। किन्तु 'उत्तरकुरु' द्रह की जगह 'देवकुरु द्रह' कहना चाहिये ।
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