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समवायांग सूत्र aadhardhandawwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwws पच्चस्थिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवास पव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठाणउई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते एवं चउहिसिं वि। दाहिण भरहवस्स णं धणुपिटे अट्ठाणउइं जोयणसयाई किंचूणाई आयामेणं पण्णत्ते। उत्तराओ णं कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमाणे एगूणपण्णासइमे मंडलगए अट्ठाणउई एकसट्ठिभागे मुहुत्तस्स दिवस खेत्तस्स णिवुड्डित्ता रयणि खेत्तस्स अभिणिवुड्डित्ता णं सूरिए चार चरइ। दक्खिणाओ णं कट्ठाओ सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे एगूणपण्णाइसमे मंडलगए अट्ठाणउइं एकसट्ठिभाए मुहुत्तस्स रयणि खेत्तस्स णिवुड्डित्ता दिवस खेत्तस्स अभिणिवुड्डित्ता णं सूरिए चारं चरइ। रेवई पढम जेट्ठा पजवसाणाणं एगूणवीसाए णक्खत्ताणं अट्ठाणउइं ताराओ तारग्मेणं पण्णत्ताओ ॥९८॥
कठिन शब्दार्थ - पंडुय वणस्स - पण्डक वन के, दाहिणभरहड्डस्स - दक्षिण भरतार्द्ध का, रेवई पढम जेट्ठा पजवसाणाणं - रेवती से लेकर ज्येष्ठा नक्षत्र तक ।
भावार्थ - नन्दन वन के ऊपर के चरमान्त से पण्डक वन के नीचे के चरमान्त तक ९८ हजार योजन का अन्तर कहा गया है अर्थात् मेरु पर्वत एक लाख योजन का है, उसमें से एक हजार योजन जमीन में है और जमीन से ५०० योजन की ऊंचाई पर नन्दन वन है, नन्दन वन में ५०० योजन के कूट हैं, इस प्रकार २ हजार योजन निकाल देने पर ९८ हजार योजन का अन्तर रहता है। मेरु पर्वत के पश्चिम के चरमान्त से गोस्थूभ आवास पर्वत के पूर्व चरमान्त तक ९८ हजार योजन का अन्तर कहा गया है। इसी प्रकार चारों दिशाओं में जानना चाहिए। दक्षिण भरतार्द्ध का धनुपृष्ठ देशोन ९८०० योजन का लम्बा कहा गया है। उत्तर दिशा से सूर्य प्रथम छह मास भ्रमण करता हुआ जब उनपचासवें मण्डल में जाता है तब एक मुहूर्त के इकसठिये अट्ठाणवें भाग (६१) दिन को कम करके और रात्रि को बढ़ा कर सूर्य भ्रमण करता है। दक्षिण दिशा से दूसरे छह महीने भ्रमण करता हुआ सूर्य जब उनपचासवें मण्डल में जाता है तब मुहूर्त के इगसठिये अट्ठानवें भाग ( ५९.) रात्रि को कम करके और दिन को बढ़ा कर सूर्य भ्रमण करता है अर्थात् जब सूर्य पहले छह मास में दक्षिणायन में भ्रमण करता है तब दिन छोटा होता जाता है और रात्रि बढ़ती जाती है। जब दूसरे छह मास में सूर्य उत्तरायण में भ्रमण करता है तब रात्रि छोटी होती जाती है और दिन बढ़ता जाता है।
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