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समवायांग सूत्र
यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। श्री श्रेयांशनाथ भगवान् के समय में होने वाला प्रथम वासुदेव श्री त्रिपृष्ठ ८४ लाख वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोग कर सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ। देवों के राजा देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र के ८४ हजार सामानिक देव कहे गये हैं। अढाई द्वीप में ५ मेरु पर्वत हैं उनमें से जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत को छोड़ कर बाकी ४ मेरु पर्वत ८४-८४ हजार योजन के ऊंचे कहे गये हैं। आठवें नन्दीश्वर द्वीप में चारों दिशाओं में चार अञ्जनक पर्वत हैं, वे सभी ८४-८४ हजार योजन के ऊंचे कहे गये हैं। हरिवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों की जीवा का धनुपृष्ठ ८४०१६ - योजन विस्तृत कहा गया . है। रत्नप्रभा नरक के तीन काण्ड हैं उनमें से दूसरे पक बहुल काण्ड के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त तक ८४ लाख योजन का अन्तर कहा गया है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवती सूत्र में ८४ हजार पद कहे गये हैं। नागकुमार देवों के ८४ लाख भवन कहे गये हैं। आचार्यों द्वारा बनाये हुए ८४ हजार प्रकीर्णक कहे गये हैं। जीवोत्पत्ति के स्थान ८४ लाख कहे गये हैं। पूर्व से लेकर शीर्ष प्रहेलिका तक ८४ से गुणा करते जाने पर १९४ अंक होते हैं। कौशलीक भगवान् ऋषभदेव स्वामी के ८४ गण और ८४ गणधर थे।
कौशलीक भगवान् ऋषभदेव स्वामी के ऋषभसेन आदि ८४ हजार साधु थे। वैमानिक देवों के सब मिला कर ८४९७०२३ विमान हैं अर्थात् सौधर्म देवलोक में ३२ लाख, ईशान में २८ लाख, सनत्कुमार में १२ लाख, माहेन्द्र में ८ लाख, ब्रह्म देवलोक में ४ लाख, लान्तक में ... ५० हजार, महाशुक्र में ४० हजार, सहस्रार में ६ हजार, आणत प्राणत में ४००, आरण अच्युत में ३००, नवग्रैवेयक की पहली त्रिक में १११, दूसरी त्रिक में १०७, तीसरी त्रिक में १०० और ५ अनुत्तर विमान, ये सब मिला कर ८४९७०२३ विमान होते हैं।
विवेचन - भगवान् ऋषभदेव उनके पुत्र भरत और बाहुबली तथा दो पुत्रियाँ ब्राह्मी और सुन्दरी इन पांचों का आयुष्य ८४ लाख पूर्व था। ११ वें तीर्थङ्कर श्री श्रेयांसनाथ २१ लाख वर्ष कुमारावस्था में ४२ लाख वर्ष, राज्य अवस्था में और २१ लाख वर्ष श्रमण पर्याय में इस प्रकार ८४ लाख वर्ष सम्पूर्ण आयुष्य को भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त हुए।
जम्बूद्वीप में एक मेरु पर्वत है। वह ९९००० योजन का ऊंचा है और एक हजार योजन धरती में है। इस प्रकार सम्पूर्ण १ लाख योजन का है। धातकी खण्ड में दो मेरु पर्वत हैं और अर्द्ध पुष्करवर द्वीप में भी दो मेरु पर्वत हैं। ये चारों मेरु पर्वत धरती से ऊपर चौरासी हजार चौरासी हजार योजन ऊंचे हैं तथा एक एक हजार योजन धरती में ऊंडे हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण
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