________________
२५०
समवायांग सूत्र
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के छठे गणधर मण्डित पुत्र ५३ वर्ष गृहस्थ पर्याय में रहे . और तीस वर्ष श्रमण पर्याय (१४ वर्ष छद्मस्थ और + १६ वर्ष भवस्थ केवली) में रहे इस प्रकार ८३ वर्ष सर्व आयुष्य को पूरा करके सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त हुए।
यहाँ दसवें तीर्थङ्कर श्री शीतलनाथ स्वामी के ८३ गणधर और ८३ गण बतलाये हैं। किन्तु आवश्यक सूत्र में ८१ गण और ८१ गणधर बतलाये गये हैं। यह मतान्तर मालूम होता
है।
कौशलिक अर्थात् कोशलदेश में उत्पन्न हुए भगवान् ऋषभदेव २० लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहे। फिर इन्द्रों ने उनका राज्याभिषेक किया तब ६३ लाख पूर्व तक राज्य अवस्था में रहे। इस प्रकार ८३ लाख पूर्व तक गृहस्थावस्था में रह कर फिर दीक्षित हुए। भगवान् ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र भरत चक्रवर्ती ७७ लाख पूर्व कुमार अवस्था में रहे। फिर छह लाख पूर्व चक्रवर्ती पद भोगा. । एक वक्त स्नानादि कर के सर्वाभूषण आदि अलंकारों से अलंकृत होकर अपने आदर्श भवन (चक्रवर्ती के सब महलों में सर्वश्रेष्ठ जिसमें हीरे जड़े हुए .. होते हैं) में आकर पूर्व की तरफ मुँह करके रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे । वहाँ चक्रवर्ती के सब ठाट पाट यावत् संसार के पर्व पदार्थों की अनित्यता का विचार कर अनित्य भावना की सर्वोच्च श्रेणि पर चढ़ कर एवं क्षपक श्रेणि पर आरूढ होकर चार घातकर्मों का क्षयं करके सर्वज्ञ सर्वदर्शी केवल ज्ञानी बन गये। केवलज्ञानी बनने के बाद सब आभूषण, वस्त्र, माला, केशालंकार, रूप चारों अलंकारों को उतारा। इन्द्र ने इन को साधु वेष दिया। केवली होकर अन्तः पुर के मध्य होकर बाहर निकले। उनके साथ दस हजार राजाओं ने भी दीक्षा ली।
नोट - भरत चक्रवर्ती के लि! 'कांच का महल' कहना उचित नहीं है। तथा 'एक अङ्गली की अङ्गठी गिर गई फिर एक-एक आभूषण उतारते गये अङ्गली असुन्दर लगने लगी, इत्यादि कहना भी उपरोक्त आगम पाठ से विपरीत जाता है। शरीर का असुंदर लगने का अनित्य भावना के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है।
चौरासीवां समवाय . चउरासीइं णिरयावास सयसहस्सा पण्णत्ता। उसभे णं अरहा कोसलिए चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वंदुक्खप्पहीणे एवं भरहो बाहुबली, बंभी, सुंदरी। सिज्जंसे णं अरहा चउरासीइं वाससयसहस्साई सव्वाउयं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org