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समवाय ८१
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सूर्य का सर्व संचार क्षेत्र ५१० योजन है इनमें से ३३० योजन लवण समुद्र के ऊपर है और १८० योजन जम्बूद्वीप के भीतर है। वहाँ उत्तर दिशा को प्राप्त होकर सूर्य प्रथम बार अर्थात् प्रथम मण्डल में उदित होता है।
- इक्यासीवां समवाय नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा एक्कासीइ राइदिएहिं चउहिं च पंचुत्तरेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहिया। कुंथुस्सणं अरहओ एक्कासीइं मणपजवणाणिसया होत्था। विवाहपण्णत्तीए एक्कासीई महाजुम्मसया पण्णत्ता ॥ ८१ ॥
कठिन शब्दार्थ - नवनवमिया भिक्खुपडिमा - नवनवमिका भिक्षु पडिमा, एक्कासीइं मणपजवणाणिसया - ८१०० मन:पर्ययज्ञानी, विवाहपण्णत्तीए - व्याख्याप्रज्ञप्ति-श्री भगवती सूत्र में, महाजुम्मसया - महायुग्मशत यानी कृतयुग्म आदि अध्ययन।
भावार्थ - प्रथम ९ दिन तक एक दत्ति आहार की और एक दत्ति पानी की लेना, दूसरे ९ दिन तक दो दत्ति आहार की और दो दत्ति पानी की लेना, इस तरह करते हुए। नववें नवक अर्थात् ९ दिन तक ९ दत्ति आहार की और ९ दत्ति पानी की लेना, इसे नवनवमिका भिक्षु पडिमा कहते हैं। नवनवमिका भिक्षु पडिमा ८१ रात दिन में ४०५ भिक्षा की दत्ति से सूत्रानुसार आराधित होती है है। भगवान् कुन्थुनाथ स्वामी के ८१०० मनःपर्ययज्ञानी थे। श्रीभगवती सूत्र में ८१.महायुग्मशत यानी कृतयुग्म आदि अध्ययन कहे गये हैं।। ८१ ॥ - विवेचन- नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा में नव नवक होते है। प्रथम नवक में एक दत्ति
और दूसरे नवक में दो दो दत्ति इस तरह एक एक दत्ति बढ़ाते हुए नववें नवक में नव नव दत्ति आहार पानी का लेना कल्पता है। इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिये कि - उन उन नवकों में उतनी दत्तियाँ लेनी ही चाहिये, किन्तु ले सकते हैं ऐसा कल्प है। अपनी इच्छानुसार और खपत के अनुसार कम दत्तियाँ भी ली जा सकती है। यथा नववें नवक में एक दत्ति आहार पानी की लेकर संतोष किया जा सकता है। ___ भगवती सूत्र में महायुग्म शत कहे हैं। यहाँ पर 'शत' शब्द से अध्ययन लिये गये हैं। अतः कृतयुग्मादि राशि विशेष का जिनमें विचार किया गया है। वे अन्तर अध्ययन रूप अन्तर . शतक समझना चाहिये।
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