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समवाय ३१
भगनननननननननननन
सब से बाहर के मंडल में आकर भ्रमण करता है । तब इस भरत क्षेत्र में रहे हुए मनुष्य को ३१८३१ ॥ योजन की दूरी से सूर्य दिखाई देता है। प्रत्येक तीसरे वर्ष जो अधिक मास आता है उसे अभिवर्द्धित मास कहते हैं। वह अभिवर्द्धित मास कुछ अधिक इकतीस रात्रि दिन का होता है। एक रात्रि के १२४ भाग में से १२१ भाग अधिक होता है । जिस समय सूर्य राशि का भोग करता है वह आदित्य मास कहलाता है । वह आदित्य मास कुछ अधिक इकतीस रात्रि दिन का होता है। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति इकतीस पल्योपम की कही गई है। तमस्तमा नामक सातवीं नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति इकतीस सागरोपम की कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति इकतीस पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति इकतीस पल्योपम की कही गई है।
विजय वैजयन्त जयन्त और अपराजित इन चार अनुत्तर विमान के देवों की जघन्य स्थिति इकतीस सागरोपम की कही गई है। जो देव उपरिम उपरिम नामक नवमें ग्रैवेयक विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति इकतीस सागरोपम की . कही गई है। वे देव इकतीस पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को इकतीस हजार वर्षों से आहार की इच्छा पैदा होती है। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो इकतीस भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ ३१ ॥
विवेचन - यहाँ सिद्ध भगवन्तों के ३१ गुण बताये गये हैं ।
प्रश्न- सिद्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर- ध्यातं सितं येन पुराण कर्म, यो वा गतो निर्वृत्तिसौधमूर्ध्नि ।
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ख्यातोनुशास्ता परिनिष्ठितार्थो, यः सोऽस्तु सिद्धः कृतमंगलो मे ॥
अर्थ - जिसने पुराने बन्धे हुए सब कर्मों का क्षय कर दिया है अतएव लोक के अग्रभाग पर स्थित है, प्रसिद्ध, अनुशास्ता, परिनिष्ठितार्थ ( कृतकार्य ) है उसे सिद्ध कहते हैं वे सिद्ध हमारे कल्याण के लिये होवे ।
प्रश्न- यहाँ 'सिद्धादि' गुण कहा है सो यहाँ पर 'आदि' शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर जीव जब आठ कर्मों से मुक्त हो जाता है तब सिद्ध कहलाता है। सिद्ध के 'आदि' अर्थात् प्रारम्भ काल में यानी प्रथम समय में ही ३१ गुण प्रकट हो जाते हैं । अतः यहाँ 'आदि' शब्द का अर्थ है सिद्ध का प्रथम समय ।
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