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समवायांग सूत्र
चरमंताओ गोयम दीवस्स पच्चथिमिल्ले चरमंते एस णं एगूणसत्तरि जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। मोहणिज वजाणं सतण्हं कम्मपयडीणं एगूणसत्तरं उत्तर पयडीओ पण्णत्ताओ ॥ ६९ ॥ .
कठिन शब्दार्थ - मंदरवजा - मेरु पर्वत को छोड़ कर, एगुणसत्तरि - ६९, वासा - क्षेत्र, वासहरपव्वया - वर्षधर पर्वत, उसुयारा - इषुकार पर्वत।
- भावार्थ - मनुष्य क्षेत्र में मेरु पर्वत को छोड़ कर ६९ क्षेत्र और ६९ वर्षधर पर्वत कहे गये हैं। यथा - अढाई द्वीप में ५ मेरु पर्वत हैं। एक एक मेरु पर्वत के पास सात सात क्षेत्र
और छह छह वर्षधर पर्वत हैं। इस तरह ३५ क्षेत्र और ३० वर्षधर पर्वत हुए और धातकीखण्ड में दो इषुकार पर्वत हैं और अर्द्धपुष्कर द्वीप में भी दो इषुकार पर्वत हैं, ये चार इषुकार पर्वत हैं, ये सब मिल कर ६९ हुए। मेरु पर्वत के पश्चिम के चरमान्त से. गौतम द्वीप के पश्चिम चरमान्त के बीच में ६९ हजार योजन का अन्तर है। मेरु पर्वत से ४५ हजार योजन पर जगती है, जगती से १२ हजार योजन दूर लवण समुद्र में गौतम द्वीप है और वह १२ हजार योजन चौड़ा है, इस तरह सब मिला कर ६९ हजार योजन हुए। मोहनीय कर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मों की ६९ उत्तर प्रकृतियाँ हैं। जैसे कि ज्ञानावरणीय की ५, दर्शनावरणीय की ९, वेदनीय की २, आयुष्य की ४, नाम की ४२, गोत्र की २ और अन्तराय की ५, ये सब मिला कर ६९ प्रकृतियाँ हुई।। ६९ ॥ _ विवेचन - समय क्षेत्र अर्थात् मनुष्य क्षेत्र रूप अढाई द्वीप में मेरु पर्वत को छोड़ कर ३५ क्षेत्र, ३० वर्षधर और चार इषुकार पर्वत इस तरह ६९ हो जाते हैं। एक मेरु सम्बन्धी ७ क्षेत्र होते हैं यथा - भरत, ऐरवत, महाविदेह, हैमवत, हैरण्यवत्, हरिवास, रम्यक्वास ये सात क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं। देवकुरु और उत्तरकुरु महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत आ गये हैं। इसलिये उनको यहाँ अलग से नहीं गिना गया है। धातकी खण्ड द्वीप में और अर्द्धपुष्करवर द्वीप में इनसे दुगुने दुगुने क्षेत्र हैं। अर्थात् चौदह चौदह क्षेत्र हैं। इस प्रकार ७+१४+१४ ये ३५ क्षेत्र हैं। जम्बूद्वीप में छह वर्षधर पर्वत हैं यथा - चुल्लहिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी, शिखरी। इससे दुगुने बारह धातकी खण्ड द्वीप में और बारह अर्द्ध पुष्करवर द्वीप में हैं। अतः ६+१२+१२ = ३० वर्षधर पर्वत हैं। क्षेत्रों का विभाग करने वाले होने से इन्हें वर्षधर पर्वत कहते हैं। धातकी खण्ड में दो और अर्द्धपुष्करवर द्वीप में दो इषुकार पर्वत हैं। इन सबको मिलाने से ६९ हो जाते हैं यथा - ३५+३०+४=६९ ।
मेरु पर्वत से पश्चिम में एवं लवण समुद्र की पश्चिम दिशा में १२००० योजन लवण
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