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समवाय७०
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सूत्र के १० वें उद्देशक में इस सूत्र की व्याख्या करते हुए उनके आगमिक प्रमाण देकर यह सिद्ध किया है कि - संवत्सरी भादवा सुदी पंचमी को ही होती है। आगमों में मुनि के लिये 'ऋषि' शब्द का प्रयोग भी हुआ है। इसलिये ऋषिपञ्चमी भादवासुदी पञ्चमी को ही होती है।
. कई धार्मिक पर्व और लौकिक त्यौहार जो कि महीने के शुक्ल पक्ष में आते हैं वे सब महीना बढ़ने पर दूसरे महीने में ही किये जाते हैं। जैसे कि -
चैत्र में महावीर जयन्ती, राम नवमी और आयंबिल ओली, वैशाख में अक्षय तृतीया (आखातीज), ज्येष्ठ में श्रुत पञ्चमी, निर्जला इग्यारस, आषाढ में सु नवमी (शुभ नवमी), देवशयनी ग्यारस, श्रावण में रक्षा-बन्धन, भादवे में गणेश चौथ, ऋषि पञ्चमी, अनंत चतुर्दशी, आसोज में आयम्बिल ओली विजयादशमी, कार्तिक में ज्ञान पञ्चमी, देव उठणी ग्यारस, मिगसर में मौन एकादशी (भगवान् मल्लिनाथ का जन्म दिवस) पौष में भगवान् मल्लिनाथ की दीक्षा और केवल ज्ञान (पौष सुदी ११), माघ में बसन्तपञ्चमी और फाल्गुन में होली । इस प्रकार उपरोक्त महीने दो-दो होने पर ये सब पर्व और त्यौहार दूसरे महीने में मनाये जाते हैं। इसी प्रकार संवत्सरी पर्व भी सुद पक्ष का पर्व है। इसलिये दो भादवा होने पर दूसरे भादवे में ही मनाना चाहिये। श्रावण में संवत्सरी पर्व मनाने का कहीं भी उल्लेख नहीं है। यह बात अभिधान राजेन्द्र कोष आदि का प्रमाण देकर पहले बताई जा चुकी है। लोक व्यवहार में भी दो श्रावण आने पर रक्षा-बंधन दूसरे श्रावण में ही मनाया जाता है। इसलिये दूसरे श्रावण में संवत्सरी कर लेने पर ब्राह्मण समाज एवं अन्य मतावलम्बी आश्चर्य-ताज्जुब करते हुए हंसी भी कर देते हैं कि - रक्षा बन्धन के पहले क्या कभी संवत्सरी हो सकती है? संवत्सरी तो हमेशा रक्षा-बन्धन के बाद ही होती है। .. · निष्कर्ष यह है कि - आगमिक प्रमाणों के द्वारा तथा लौकिक पञ्चाग और लौकिक व्यवहारों के द्वारा.यह सूर्य के प्रकाश की तरह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि - संवत्सरी पर्व भादवा सुदी ५ (दो भादवा होने पर दूसरे भादवा सुदी ५ को) ही मनाना चाहिये। श्रावण में संवत्सरी करना तो सर्वथा आगमविरुद्ध है।
यह संवत्सरी सम्बन्धी सूत्र सित्तरवें समवाय में दिया है। इसलिये शास्त्रकार ने पीछले सित्तर दिनों को पहले के पचास दिनों की तरह पूरा महत्त्व दिया है। इसलिये संवत्सरी सम्बन्धी सूत्र सित्तरवें समवाय में दिया है पचासवें समवाय में नहीं। इस प्रकार इस सूत्र का अर्थ है एक महीना बीस दिन बीतने पर और पीछे सित्तर दिन बाकी रहने पर संवत्सरी करनी चाहिये। ये दोनों बातें एक साथ रहनी चाहिये और यह तब ही बन सकता है जब कि बढ़ने
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