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समवायांगसूत्र waamanawaamaamanarasmawaseemaaamwaseenemamaeesameemamasaamaanmaseem वाले महीने को गौण कर दिया जाय-गिनती में न लिया जाय। यदि पचास दिनों को महत्त्व देकर दूसरे श्रावण में या पहले भादवें में संवत्सरी कर ली जाय तो पीछे सित्तर दिन के बजाय सौ दिन रह जाते हैं। यह बात इस सूत्र के विपरीत जाती है। क्यों कि रहने चाहिये सित्तर दिन। अन्यथा सूत्रोक्त यह नियम टूट जाता है। इस नियम का यथावत् पालन तभी हो सकता है जब कि बढ़ने वाले महीने को गौण नगण्य कर दिया जाय। फिर कोई विवाद ही नहीं रहता और यह भगवान् की आज्ञा रूप सूत्र का यथावत् पालन हो जाता है। जीव आज्ञा का आराधक बन जाता है। इसे विपरीत करने पर भगवान् की आज्ञा की विराधना होती है। अतः जीव विराधक बन जाता है।
वर्तमान में प्रचलित निर्णयसागरीय आदि पञ्चाङ्गों में चन्द्र संवत्सर को आधार माना है। चन्द्र संवत्सर में २१.भाग का दिन और ५४.११. दिनों का एक चन्द्र संवत्सर होता है। इस हिसाब से श्रावण वदी एकम से लेकर कार्तिक सुदी पूर्णिमा तक चार महीनों के १२० दिन नहीं होते हैं। किन्तु कभी ११९ और कभी ११८ दिन ही रह जाते हैं। उन घटी हुई तिथियों को भी गौण कर दिया जाता है। इसलिये इस सूत्र में बताये हुए संवत्सरी के पहले पचास और पीछे सित्तर दिन रहने का नियम बराबर बैठ जाता है। जिस प्रकार घटी हुई या बढी हुई तिथियों को उन्हीं पक्ष में या महीने में शामिल कर दिया जाता है। इसी प्रकार बढ़े हुए महीने को भी गौण कर देना चाहिये। ..
इस सूत्र में एक वाक्य है। इसमें समयवाचक शब्दों के बीच में 'वा' 'अथवा' आदि 'आदि' अर्थवाचक शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है। इसलिये संवत्सरी के समय पूर्व में पचास दिन व्यतीत होना तथा बाद में सित्तर दिन शेष रहना ये दोनों बातें नितांत आवश्यक है। क्योंकि सूत्र में दोनों समय वाचक शब्दों का स्पष्ट उल्लेख है। अतः यह निर्विवाद सिद्ध है कि भादवा सुदी पञ्चमी को ही संवत्सरी पर्व होता है। _____ मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट बन्ध स्थिति ७० कोडाकोडी सागरोपम की है। ८ कर्मों में
और किसी कर्म की इतनी लम्बी स्थिति नहीं है इसलिये इसे आठ कर्मों का राजा कहा जाता है। जब तक बंधा हुआ कर्म उदय में आकर बाधा न देवे, उसे 'अबाधाकाल' कहते हैं। अबाधाकाल का सामान्य नियम यह है - कि एक कोडाकाडी सागरोपम की स्थिति बन्धने वाले कर्म का अबाधा काल १०० वर्ष का होता है। इस नियम के अनुसार सित्तर कोडाकोडी सागरोपम स्थिति का बन्ध होने पर इसका अबाधा काल ७० सौ अर्थात् ७००० वर्ष का होता
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