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समवाय ७०.
२२५ memmemomeonesemomameramewomenewesomewwwmammeemeenternamansammamaeem
उत्तर - भादवा सुदी ५ को संवत्सरी करने का उल्लेख आगमों में कई जगह है। यथा - समवायाङ्ग सूत्र में नवाङ्गी टीकाकार. श्री अभयदेवसूरिजी ने टीका में लिखा है
"भाद्रपदशुक्लपञ्चम्याम् ।" . अभिधान राजेन्द्र कोश ५ वाँ भाग में 'पज्जुसवणाकप्प' शब्द का पृष्ठ २३५ से २५५ - तक (२१ पृष्ठों) में २८ प्रकार की विषय सूची देकर खूब विस्तृत विवेचन और व्याख्या की है। पृष्ठ २३९ पर लिखा है -
एवं यत्र कुत्रापि पर्युषणनिरूपणं तत्र भाद्रपदविशेषितमेव न तु क्वाप्यागमे
"भहवयसुद्धपंचमीए पज्जोसविजई त्ति" पाठवत् "अभिवड्डिअवरिसे सावणसुद्धपंचमीए पजोसविजइ ति" पाठ उपलभ्यते ।
अर्थ - जहाँ कहीं भी पर्युषण अर्थात् संवत्सरी का निरूपण हुआ है वहाँ भाद्रपद मास ही लिया गया है किन्तु सावण दो हो जाने पर 'भादवा सुद पञ्चमी को संवत्सरी करना चाहिये' इस पाठ की तरह दो सावण हो जाने पर दूसरे सावण सुदी पञ्चमी को संवत्सरी करनी चाहिये' ऐसा पाठ आगम में कहीं भी नहीं मिलता है। ... जैन जगत् के महान् ज्योतिधर जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहरलाल जी म. सा. के सुशिष्य
पूज्य श्री घासीलाल जी म. संस्कृत के महान् विद्वान् और पण्डित हो गये हैं, उन्होंने आचाराङ्गादि , ३२ सूत्रों पर संस्कृत में टीका लिखी है। उन्होंने निशीथ सूत्र उद्देशा १० के सूत्र क्रमाङ्ग ४६
की टीका में लिखा है - __"यः कश्चिद् भिक्षुः श्रमण श्रमणी वा पर्युषणायां सांवत्सरिक प्रतिक्रमणदिवसे
भाद्रपदशुक्लपञ्चम्याम् ।" .. अर्थ - जो साधु-साध्वी संवत्सरी प्रतिक्रमण के दिन अर्थात् भादवासुदी पञ्चमी को संवत्सरी प्रतिक्रमण नहीं करता है और चौविहार उपवास नहीं करता है उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
निष्कर्ष यह है कि - साधु साध्वी को भादवा सुदी पाञ्चम को संवत्सरी प्रतिक्रमण करना चाहिये और चौविहार उपवास भी करना चाहिये। ... कुछ लोग उत्सर्पिणी काल के दूसरे आरे के प्रारम्भ में सात-सात दिन के सात मेष के ४९ दिन बताकर तथा कोई ५ मेघ और सात-सात दिन के दो उपाड़ अन्तर बता कर आषाढी चौमासी के पचासवें दिन संवत्सरी कायम करने की युक्ति दूसरे सावण और प्रथम भाद्रपद में
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