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समवायांग सूत्र
सागरोपम का कहा गया है। देवों के राजा देवों के इन्द्र माहेन्द्र के सत्तर हजार सामानिक देव कहे गये हैं ॥ ७० ॥
विवेचन - इस शास्त्रीय पाठ से यह सिद्ध होता है कि - वर्षाकाल के एक मास और बीस रात्रि-दिन व्यतीत होने पर और ७० रात्रि-दिन शेष रहने पर हमारे शासनपति श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने संवत्सरी पर्व किया था। इसी प्रकार हमें भी करना चाहिये। ..
प्रश्न - श्रावण मास दो हों तथा भादवा दो हों तब संवत्सरी कब करनी चाहिये?
उत्तर - पञ्चाङ्ग के अनुसार जो महीना बढ़ता है उसमें प्रथम मास को नगण्य किया जाता है। उसको अधिक मास, काल चूला, पुरुषोत्तम मास अथवा नपुंसक मांस कह कर गौण कर दिया जाता है और दूसरे मास को ही असली मास गिना जाता है। इसीलिये दो सावण होने पर पहले सावण को गौण कर देना चाहिये। इसी प्रकार भादवा दो होने पर पहले भादवे को नगण्य कर देना चाहिये। तब संवत्सरी दूसरे भादवा सुदी ५ की आ जाती है।
प्रश्न - जब महीना बढता है तो उसे गौण क्यों करना चाहिये? .. उत्तर - एक वर्ष में तीन चौमासी प्रतिक्रमण होते हैं - यथा - आषाढी पूर्णिमा, कार्तिकी पूर्णिमा और फाल्गुनी पूर्णिमा। मिगसर मास से लेकर फाल्गुन तक बीच में पौष महीना आदि कोई महीना बढ़ जाने पर भी फाल्गुनी पूर्णिमा को चौमांसी प्रतिक्रमण किया जाता है। उसमें "चौमासी मिच्छामि दुक्कडं" दिया जाता है किन्तु 'पञ्चमासी मिच्छामि दुक्कडं' नहीं दिया जाता है। चैत्र से लेकर आषाढ तक बीच में कोई महीना बढ़ जाने पर तथा सावण से लेकर कार्तिक तक बीच में कोई महीना बढ़ जाने पर आषाढी पूर्णिमा को तथा कार्तिक पूर्णिमा को चौमासी प्रतिक्रमण किया जाता है, पञ्चमासिक नहीं तथा 'चौमासी मिच्छामि दुक्कडं' दिया जाता है, 'पञ्चमासी मिच्छामि दुक्कडं' नहीं । इसी प्रकार सावण या भाद्रपद दो होने पर पहले महीने को गौण कर देने पर संवत्सरी भादवा सुदी ५ को आ जाती है। उसमें किसी प्रकार का विवाद नहीं रहता है। यह ध्रुव और अटल नियम है।
प्रश्न - श्रावण दो हो जाने पर दूसरे श्रावण में संवत्सरी करने का कोई आगम में उल्लेख है? ___उत्तर - आगमों में, टीका में, भाष्य और चूर्णि में श्रावण में संवत्सरी करने का कहीं पर भी उल्लेख नहीं है।
प्रश्न - भादवा सुदी ५ को संवत्सरी करने का उल्लेख कहीं है?
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