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समवाय४३
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तयालीसवां समवाय तेयालीसं कम्मविवागझयणा पण्णत्ता। पढम चउत्थ पंचमासु पुढवीसु तेयालीसं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। जंबूहीवस्स णं दीवस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं तेयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं चउद्दिसिं वि दगभासे, संखे, दगसीमे । महालियाए णं विमाणपविभत्तीए तइए वग्गे तेयालीसं उद्देसण काला पण्णत्ता।
कठिन शब्दार्थ - कम्म विवागज्झयणा - कर्म के विपाक (फल) बतलाने वाले अध्ययन, पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ - पूर्व के चरमान्त से, गोथूभस्स आवास पव्वयस्सगोस्थूभ आवास पर्वत का।
भावार्थ - पुण्य और पाप रूप कर्म के विपाक-फल बतलाने वाले तयालीस अध्ययन कहे गये हैं अर्थात् सूत्रकृताङ्ग सूत्र के २३ अध्ययन और विपाक सूत्र के २० अध्ययन, ये दोनों मिला कर ४३ अध्ययन कहे गये हैं। पहली नरक में ३० लाख, चौथी नरक में १० लाख और पांचवीं नरक में ३ लाख, इस प्रकार इन तीनों नरकों के कुल मिला कर तयालीस लाख नरकावास कहे गये हैं। इस जम्बूद्वीप की जगती के कोट के पूर्व के चरमान्त से गोस्थूभ आवास पर्वत का पूर्व का चरमान्त तयालीस हजार योजन की दूरी पर है अर्थात् गोस्थूभ पर्वत ४२ हजार योजन का लम्बा है और १ हजार योजन का चौड़ा है, इस प्रकार कुल मिला कर ४३. हजार योजन का है। इसी प्रकार चारों दिशाओं में जानना चाहिए अर्थात् दक्षिण दिशा में दगभास पर्वत है। पश्चिम दिशा में शंख पर्वत है और उत्तर दिशा में दगसीम पर्वत है। महालिका विमान प्रविभक्ति नामक कालिक सूत्र के तीसरे वर्ग में तयालीस उद्देशन काल कहे गये हैं ॥ ४३ ॥ ..
विवेचन - मूल में कर्म विपाक के ४३ अध्ययन कहे गये हैं। किन्तु उन अध्ययनों का नाम निर्देश नहीं किया है। इस विषय में टीकाकार ने लिखा है -
"एतानि च एकादशाङ्गद्वितीयाङ्गयोः संभाव्यन्त इति ।"
- अर्थात् ग्यारहवाँ अङ्गसूत्र विपाक के २० अध्ययन (दुःखविपाक के दस अध्ययन और सुखविपाक के भी दस अध्ययन) तथा दूसरा अङ्गसूत्र सूयगडाङ्ग के २३ अध्ययन इन दोनों को मिलाकर ४३ अध्ययन हुए हैं, ऐसी सम्भावना की जाती है।
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