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समवायांग सूत्र
जम्बूद्वीप में दो सूर्य दो चन्द्र हैं। लवण समुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं। धातकी खण्ड में बारह चन्द्र और बारह सूर्य हैं। इसके आगे चन्द्र सूर्य की संख्या जानने के लिये यह गणित है -
चन्द्र सूर्य की अन्तिम द्वीप और समुद्र में जितनी संख्या आई हो उनको तीन से गुणा करके पिछले द्वीप समुद्रों की जितनी संख्या है उसको उस संख्या में जोड़ देना चाहिए । यह गणित धातकी खण्ड से आगे लागू होता है। जैसे कि धातकी खण्ड में बारह चन्द्र हैं इनको तीन से गुणा करने पर छत्तीस होते हैं। इन छत्तीस में पिछले छह चन्द्र (जम्बू द्वीप के दो, लवण समुद्र के चार) को जोड़ देने से कालोदधि समुद्र में बयालीस चन्द्रों की संख्या आ जाती है। इसी प्रकार सूर्यों की भी संख्या समझनी चाहिए । क्योंकि चन्द्रों की और सूर्यों की संख्या सब द्वीप समुद्रों में बराबर होती है। इस गणित के अनुसार अगले द्वीप समुद्रों में भी चन्द्र सूर्यों की संख्या समझ लेनी चाहिए। जैसे कि कालोदधि समुद्र में बयालीस चन्द्र और बयालीस सूर्य हैं। इन बयालीस को तीन से गुणा करना चाहिए ४२४३-१२६ । इन में पिछली संख्या अठारह (जम्बूद्वीप के २, कालोदधि के ४ धातकी खण्ड के बारह - २+४+१२-१८) मिलाने से पुष्करवर द्वीप में १४४ चन्द्र और १४४ सूर्य (१२६+१८=१४४) की संख्या आती है। इन १४४ में से आधे अर्थात् ७२ चन्द्र और ७२ सूर्य अर्ध पुष्कर द्वीप में हैं। ये सब मिलाकर १३२ चन्द्र और १३२ सूर्य हैं। इस प्रकार अढाई द्वीप में (जम्बूद्वीप, लवण समुद्र, . घातकीखण्ड द्वीप, कालोदधि समुद्र और अर्ध पुष्कर द्वीप इस प्रकार दो समुद्र और अढाई द्वीप) १३२ सूर्य और १३२ चन्द्र चर (गति शील-निरन्तर गति करने वाले) हैं। इन के गति करते रहने से घड़ी, घण्टा, दिन, रात, पक्ष, मास, वर्ष आदि का व्यवहार होता है। इसलिये इसे समय क्षेत्र भी कहते हैं तथा इन अढाई द्वीपों में ही मनुष्यों का निवास है। इसलिये इसको मनुष्य लोक भी कहते है। इससे आगे के द्वीपों में मनुष्यों का निवास नहीं है और चन्द्र सूर्य अचर (एक ही जगह स्थिर) रहने के कारण घड़ी, घण्टा, दिन रात आदि का व्यवहार नहीं होता है। ऊपर पुष्करवर द्वीप में १४४ चन्द्र और १४४ सूर्य लिखे हैं इनमें से आधे अर्थात् ७२ चन्द्र और ७२ सूर्य मनुष्य क्षेत्र में होने से चर हैं और इससे बाहर अर्धपुष्कर द्वीप में ७२ चन्द्र और ७२ सूर्य अचर (स्थिर) हैं। इसी प्रकार आगे के सभी द्वीप समुद्रों के चन्द्र और सूर्य अचर (स्थिर) हैं।
नाम कर्म की प्रकृतियों का संक्षिप्त अर्थ भावार्थ में लिख दिया है। विशेष विस्तार कर्मग्रन्थ में हैं।
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