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समवाय ६४
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हैं। निषध पर्वत पर ६३ सूर्य मण्डल कहे गये हैं। इसी प्रकार नीलवान् पर्वत पर भी ६३ सूर्य मण्डल हैं ॥ ६३ ॥
विवेचन - देवकुरु और उत्तरकुरु युगलिक क्षेत्र में माता-पिता ४९ दिन तक अपनी सन्तान का पालन पोषण करते हैं। हरिवास और रम्यक्वास में ६४ दिन तक और हेमवय और एरण्यवय में ७९ दिन तक अपनी सन्तान का पालन पोषण करते हैं। फिर वे बच्चे और बच्ची पूर्ण जवान हो जाते हैं। फिर वे माता-पिता की अपेक्षा नहीं रखते हैं परन्तु यहाँ पर हरिवास रम्यकवास में ६३ दिन तक सन्तान का पालन पोषण करने का कहा है । सो यहाँ जन्म का दिन ग्रहण नहीं किया गया है ऐसा संभव है।
सूर्य के १८४ मण्डल होते हैं। उनमें से ६५ मण्डल जम्बूद्वीप में हैं और ११९ मण्डल लवण समुद्र में हैं। निषध पर्वत पर ६३ और नीलवान पर्वत पर भी ६३ सूर्य के मण्डल हैं। तात्पर्य यह है कि - जब सूर्य उत्तरायण होता है तब उसका उदय ६३ बार निषध पर्वत के ऊपर होता है। फिर दक्षिणायन होते हुए जम्बूद्वीप की वेदिका (जगती) के ऊपर दो बार उदय होता है। तत्पश्चात् उसका उदय लवण समुद्र के ऊपर से होता है। इस प्रकार परिभ्रमण करते हुए नीलवंत पर्वत पर भी ६३ बार उदय होता है और ११९ मण्डल लवण समुद्र में हैं इस प्रकार ६३+२+११९ = १८४ मण्डल होते हैं। एक सूर्य दो दिन में मेरु की एक प्रदक्षिणा करता है।
चौसठवां समवाय - अट्ठट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठिए राइदिएहिं दोहिं य अट्ठासीएहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव भवइ। चउसद्धिं असुरकुमारा वाससयसहस्सा पण्णत्ता। चमरस्स णं रणो चउसर्टि सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ। सव्वे वि णं दधिमुहा पव्वया पल्लासंठाण संठिया सव्वत्थसमा विक्खंभुस्सेहेणं चउसटुिं जोयणसहस्साइं पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु बंभलोए य तिसु कप्पेसु चउसद्धिं विमाणावास सयसहस्सा पण्णत्ता। सव्वस्स वि य णं रण्णो चाउरंत चक्कवट्टिस्स चउसट्ठिलट्ठीए महग्घे मुत्तामणिहारे पण्णत्ते ॥६४ ॥
. कठिन शब्दार्थ - अट्ठमिया भिक्खुपडिमा - अष्ट अष्टमिका भिक्षु प्रतिमा, दधिमुहा पव्वया - दधिमुख पर्वत, पल्लासंठाण संठिया - पाला के आकार हैं, सव्वत्थसमा - सब
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