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समवायांग सूत्र
५२। गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ वलयामहस्स महापायालस्स पच्चथिमिल्ले चरमंते एस णं बावण्णं जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं दगभासस्स केउगस्स संखस्स जूयगस्स, दगसीमस्स ईसरस्स। णाणावरणिजस्स णामस्स अंतरायस्स एएसिं तिण्हं कम्मपयडीणं बावण्णं उत्तरकम्मपयडीओ पण्णत्ताओ। सोहम्म सणंकुमार माहिंदेसु तिसु कप्पेसु बावण्णं विमाण वाससयसहस्सा पण्णत्ता।। ५२ ॥
कठिन शब्दार्थ - चंडिक्के - चाण्डिक्य, भंडणे - भंडन, दप्पे - दर्ष, थंभे - स्तम्भ, अत्तुक्कोसे - आत्मोत्कर्ष (अत्युत्कर्ष) अक्कोसे - आक्रोश, अवक्कोसे - अपकर्ष, उण्णए - उन्नत, उण्णामे - उन्नाम, णियड़ी - निकृति, कक्के - कल्क, कूडे - कूट, जिम्हे - जिम्ह, अणायरणया - अनाचरणता, पलिकुंचणया - परिकुञ्चनता, गेही - गृद्धि, कामासा - काम आशा, वलयामुहस्स महापायालस्स - बडवामुख महापाताल कलश के।
भावार्थ - मोहनीय कर्म के अर्थात् क्रोध मान माया लोभ इन चार कषायों के बावन नाम कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - क्रोध के १० नाम - १. क्रोध, २. कोप, ३. रोष ४. दोष, ५. अक्षमा, ६. संज्वलन, ७. कलह, ८. चाण्डिक्य, ९. भंडन; १०. विवाद। मान के ग्यारह नाम - ११. मान १२. मद, १३. दर्प, १४. स्तम्भ, १५. आत्मोत्कर्ष या अत्युत्कर्ष, १६. गर्व, १७. परपरिवाद, १८. आक्रोश, १८. अपकर्ष, १९. उन्नत २०. उन्नाम। माया के सत्तरह नाम - २२. माया, २३. उपधि, २४. निकृति, २५. वलय, २६. गहन, २७. नूम २८. कल्क, २९. कुरुक, ३०. दम्भ ३१. कूट, ३२. जिम्ह, ३३. किल्विषिक ३४. अनाचरणता, ३५. गूहनता, ३६. वञ्चनता ३७. परिकुञ्चनता, ३८. सातियोग। लोभ के चौदह नाम - ३९. लोभ, ४०. इच्छा, ४१. मूर्छा ४२. कांक्षा, ४३. गृद्धि, ४४. तृष्णा, ४५. भिद्या, ४६. अभिद्या, ४७. काम आशा, ४८. भोग आशा ४९. जीवित आशा, ५०. मरण आशा, ५१. नन्दी, ५२. राग । लवण समुद्र में गोस्थूभ नामक बेलंधर नागकुमार नागकुमारेन्द्र राजा के आवास पर्वत के पूर्व चरमान्त से बडवामुख महापाताल कलश के पश्चिम चरमान्त के बीच में बावन हजार योजन का अन्तर कहा गया है अर्थात् जम्बूद्वीप की जगती से ९५ हजार योजन लवणसमुद्र में जाने पर पूर्व दिशा में बड़वामुख, दक्षिण में केतु पश्चिम में यूपक और उत्तर में ईसर नामक चार महापाताल कलश हैं। जम्बूद्वीप की जगती से ४२ हजार योजन लवण समुद्र में जाने पर चारों दिशाओं में चार गोस्थूभ आदि आवास पर्वत हैं। वे एक हजार योजन
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