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समवायांग सूत्र
कठिन शब्दार्थ - तिमिस गुहा खंडगप्पवाय गुहाओ - तिमिस्र गुफाएं और खण्ड . प्रपात गुफाएं, कंचणगपव्वया - काञ्चन पर्वत, सिहरतले - शिखर पर।
भावार्थ - बीसवें तीर्थङ्कर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के पचास हजार आर्यिकाएं थीं। चौदहवें तीर्थङ्कर श्री अनन्त स्वामी के शरीर की ऊंचाई पचास धनुष थी। पुरुषोत्तम नामक चौथे वासुदेव के शरीर की ऊंचाई पचास धनुष थी। सब दीर्घ वैताढ्य पर्वत मूल में पचास-पचास योजन चौड़े कहे गये हैं। छठे लान्तक देवलोक में पचास हजार विमान कहे गये हैं। सब तिमिस्र गुफाएं और खण्ड प्रपात गुफाएं पचास-पचास योजन लम्बी कही गई हैं। सब काञ्चन पर्वत शिखर पर पचास-पचास योजन चौड़े कहे गये हैं ॥ ५० ॥ .
विवेचन - पुरुषोत्तम नामक चौथा वासुदेव, चौदहवें तीर्थङ्कर श्री अनन्तनाथ स्वामी के शासन में हुए थे। इसलिये अनंतनाथ स्वामी की तरह उनकी शरीर की ऊंचाई भी ५० धनुष की थी। . वैताढ्य पर्वत दो तरह के होते हैं। यथा - दीर्घ वैताढ्य अर्थात् लम्बे वैताढ्य और वृत्त वैताढ्य अर्थात् गोल वैताब्य पर्वत।
तिमिस्रा गुफा और खण्डप्रपात गुफा ये दोनों गुफायें दीर्घ वैताढ्य पर्वत के अन्दर हैं। खण्ड साधन करने के लिये जब चक्रवर्ती जाता है तब वह इनके दरवाजे उघाड़ता है। ये सभी दीर्घ वैतान्य पर्वत मूल में पचास योजन के विस्तार वाले हैं।
महाविदेह क्षेत्र में मेरु पर्वत के उत्तर में 'उत्तरकुरु' युगलिक क्षेत्र और दक्षिण में देवकुरु नामक युगलिक क्षेत्र है। उत्तर कुरु में पांच द्रह हैं। यथा - नीलवंत, ऐरावण, उत्तरकुरु, चन्द्र
और माल्यवन्त। प्रत्येक द्रह के पूर्व में और पश्चिम में दस दस काञ्चन 'पर्वत हैं। इस प्रकार पांचों द्रहों पर १०० काञ्चन पर्वत हैं। इसी तरह देवकुरु में भी निषध आदि पांच द्रह हैं। उन पर भी एक सौ काञ्चन पर्वत हैं। ये पर्वत १०० योजन ऊंचे हैं और मूल में भी १०० योजन विस्तृत हैं और शिखर पर पचास योजन का विस्तार है। इस प्रकार जम्बूद्वीप में दो सौ काञ्चन पर्वत हैं और इसी नाम वाले इनके स्वामी देव हैं। उनके भवन इनके शिखर पर हैं।
इकावनवां समवाय णवण्हं बंभचेराणं एकावण्णं उद्देसण काला पण्णत्ता। चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुहम्मा एकावण्णं खंभसयसण्णिविट्ठा पण्णत्ता। एवं चेव बलिस्स वि। सुप्पभे णं बलदेवे एकावण्णं वाससयसहस्साई परमाउं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे
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