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समवाय५०
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. उनपचासवां समवाय सत्तसत्तमियाए णं भिक्खुपडिमाए एग पण्णाए राइंदिएहिं छण्णउइभिक्खासएणं अहासुत्तं जाव आराहिया भवइ। देवकुरु उत्तरकुरुएसु णं मणुया एगूणपण्णा राइंदिएहिं संपण्ण जोव्वणा भवंति । तेइंदियाणं उक्कोसेणं एगूणपण्णा राइंदिया ठिई पण्णत्ता ॥ ४९ ॥
कठिन शब्दार्थ - सत्तसत्तमियाए भिक्खुपडिमाए - सप्त सप्तमिका भिक्षु प्रतिमा, एगूणपण्णाए - उनपचास, राइदिएहिं - रात दिन में, अहासुत्तं - सूत्रानुसार, छण्णउइ भिक्खासएणं - १९६ दत्ति, संपण्णजोव्वणा - सम्पन्न यौवना-पूर्ण जवान ।
. भावार्थ - सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा उनपचास रात दिन में सूत्रानुसार आराधित होती है, इसकी १९६ दत्ति होती है। देवकुरु और उत्तरकुरु में मनुष्य उनपचास दिन में सम्पूर्ण जवान हो जाते हैं। तेइन्द्रियों की उत्कृष्ट स्थिति उनपचास रात दिन की होती है ॥ ४९ ॥
विवेचन - पडिमा (प्रतिमा) का अर्थ है - अभिग्रह विशेष । सप्तसप्तमिका पडिमा ४९ दिन में पूरी होती है इसमें प्रतिसप्ताह एक-एक भिक्षा (दत्ति) की वृद्धि करने से १९६ दत्तियाँ होती हैं। इसकी विस्तृत व्याख्या दशाश्रुत स्कन्ध और अन्तगड़ सूत्र में है।
देवकुरु और उत्तरकुरु युगलिक क्षेत्र हैं। वहाँ माता-पिता अपने सन्तान की पालना ४९ दिन तक करते हैं। इसके बाद वे सम्पूर्ण यौवनावस्था को प्राप्त हो जाते हैं इसलिये मातापिता के पालन की अपेक्षा नहीं रखते हैं। जूं, लीख, चांचड, माकड (खटमल) आदि तेइन्द्रियं जीवं हैं। इनका जघन्य आयुष्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट ४९ रातदिन का होता है।
. पचासवां समवाय मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ पण्णासं अज्जिया साहस्सीओ होत्था। अणंते णं अरहा पण्णासं धणूई उड्डूं उच्चत्तेणं होत्था। पुरिसुत्तमे णं वासुदेवे पण्णासं धणूइं उड्डे उच्चत्तेणं होत्था। सव्वे वि णं दीहवेयड्डा मूले पण्णासं पण्णासं जोयणाणि विक्खंभेणं पण्णत्ता। लंतए कप्पे पण्णासं विमाणावास सहस्सा पण्णत्ता। सव्वाओ णं तिमिस्सगुहा खंडगप्पवायगुहाओ पण्णासं पण्णासं जोयणाई आयामेणं पण्णत्ताओ। सव्वे वि णं कंचणग, पव्वया सिहरतले पण्णासं पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ ५० ॥
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