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समवायांग सूत्र
Florator
कठिन शब्दार्थ - सव्वब्भिंतरमंडलं सर्वाभ्यन्तर मंडल में, इहगयस्स
क्षेत्र में रहे हुए, सत्तचत्तालीसं - सैंतालीस ।
भावार्थ जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल में आकर परिभ्रमण करता है। तब इस भरत क्षेत्र में रहे हुए मनुष्य को ४७२६३ योजन और एक योजन के ६० भाग में से २१ भाग की दूरी पर से दृष्टि गोचर होता है । भगवान् महावीर स्वामी के दूसरे गणधर श्री अग्निभूति सैंतालीस वर्ष गृहस्थवास में रह कर फिर मुण्डित होकर अनगार बने थे ॥ ४७ ॥
विवेचन - यहाँ पर दूसरे गणधर अग्निभूति का गृहवास ४७ वर्ष लिखा है। किन्तु आवश्यक सूत्र में ४६ वर्ष लिखा है। इसका कारण शायद यह मालूम होता है कि. ४७ वर्ष पूरे न हुए हों तो ऊपर के महीनों को यहाँ गौण कर देने से वहाँ ४६ वर्ष ही लिखा है।
अड़तालीसवां समवाय
एगमेगस्स रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अनयालीसं पट्टणसहस्सा पण्णत्ता । धम्मस्स णं अरहओ अडयालीसं गणा अडयालीसं गणहरा होत्था । सूरमंडले णं अडयालीसं एकसद्विभागे जोयणस्स विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ४८ ॥
कठिन शब्दार्थ - एगमेगस्स रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स - प्रत्येक चक्रवर्ती राजा के, अडयालीसं पट्टणसहस्सा अड़तालीस हजार पाटण-नगर विशेष, अडयालीसं एकसट्टिभागे जोयणस्स - एक योजन के इकसठिये अड़तालीस भाग का ।
भावार्थ - प्रत्येक चक्रवर्ती के अड़तालीस हजार पाटण-नगर विशेष कहे गये हैं। पन्द्रहवें तीर्थङ्कर श्री धर्मनाथ स्वामी के अडतालीस गण और अड़तालीस गणधर थे । सूर्य मण्डल एक योजन के इकसठिये अड़तालीस भाग का चौड़ा कहा गया है ॥ ४८ ॥
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विवेचन - 'पट्टण' शब्द का अर्थ टीकाकार ने लिखा है
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इस भरत
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“विविधदेशपण्यान्यागत्य यत्र पतन्ति तत्पत्तनं - नगरविशेष:'
अर्थ - जहाँ अनेक देशों से बेचने की वस्तुएँ आकर उतरती हैं उसको पाटण (पत्तन) कहते हैं। किसी ग्रंथ में इसको 'रत्नभूमि' कहा गया है।
पन्द्रहवें तीर्थङ्कर श्री धर्मनाथ स्वामी के ४८ गणधर कहे हैं किन्तु आवश्यक सूत्र में ४३ कहे हैं। यह मतान्तर मालूम होता है।
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