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समवायांग सूत्र
जिसके उदय से जीव का शरीर शीतल प्रकाश फैलाता है, जैसे लब्धिधारी मुनि जब वैक्रिय शरीर धारण करते हैं तथा जब देव अपने मूल शरीर की अपेक्षा उत्तर वैक्रिय शरीर धारण करते हैं उस समय उनके शरीर से शीतल प्रकाश निकलता है वह उद्योत नाम कर्म से निकलता है। १९. विहग गति नाम या विहायो गति नाम - जिसके उदय से जीव की गति हाथी या बैल के समान शुभ अथवा ऊंट या गधे के समान अशुभ होती है उसे विहायो गति नाम कर्म कहते हैं। २०. त्रस नाम - जो जीव अपना बचाव करने के लिए सर्दी से गर्मी में
और गर्मी से सर्दी में आ सकते हैं और जा सकते हों, वे त्रस कहलाते हैं। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीव त्रस हैं। जिस कर्म के उदय से जीवों को त्रस काय की प्राप्ति हो उसे त्रस नाम कर्म कहते हैं। २१. स्थावर नाम- जिस कर्म के उदय से जीव स्थिर रहें, सर्दी गर्मी से बचने का उपाय न कर सकें, वह स्थावर नाम कर्म है। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय ये स्थावर जीव हैं। २२. सूक्ष्म नाम - जिस कर्म के उदय से जीव को सूक्ष्म अर्थात् चक्षु से अग्राह्य शरीर की प्राप्ति हो । २३. बादर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव को बादर शरीर की प्राप्ति हो । २४. पर्याप्त नाम - जिस कर्म के उदय से जीव अपने योग्य पर्याप्तियों से युक्त होता है वह पर्याप्त नाम कर्म है। २५. अपर्याप्त नाम - जिस कर्म के उदय से जीव अपने योग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण न कर सके वह अपर्याप्त नाम कर्म है। २६. साधारण शरीर नाम - जिस कर्म के उदय से अनन्त जीवों का एक ही शरीर हो वह साधारण नाम कर्म है। २७. प्रत्येक शरीर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव में पृथक् पृथक् शरीर होता है, वह प्रत्येक नाम कर्म है। २८. स्थिर नाम - जिस कर्म के उदय से दांत, हड्डी, गरदन आदि शरीर के अवयव स्थिर-निश्चल होते हैं वह स्थिर नाम कर्म है। २९. अस्थिर नाम - जिस कर्म के उदय से कान, भौंह, जीभ आदि अवयव अस्थिर अर्थात् चपल होते हैं वह अस्थिर नाम कर्म है। ३०. शुभ नाम - जिस कर्म के उदय से नाभि के ऊपर के अवयव शुभ होते हैं वह शुभ नाम कर्म है। सिर आदि अवयवों का स्पर्श होने पर किसी को अप्रीति नहीं होती जैसे कि पैर के स्पर्श से होती है, यही नाभि के ऊपर के अवयवों का शुभपना है। ३१. अशुभ नाम - जिस कर्म के उदय से नाभि के नीचे के अवयव पैर आदि अशुभ होते हैं वह अशुभ नाम कर्म है। ३२. सुभग नाम - जिस कर्म के उदय से जीव किसी प्रकार का उपकार किये बिना या किसी तरह के सम्बन्ध के बिना भी सब का प्रीतिपात्र होता है वह सुभग नाम कर्म है। ३३. दुर्भग नाम - जिस कर्म के उदय से उपकारी
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