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समवाय ४२
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थे, प्रकाशित होते हैं और प्रकाशित होंगे । सम्मूच्छिम भुजपरिसॉं की उत्कृष्ट स्थिति बयालीस हजार वर्ष की कही गई है। नाम कर्म बयालीस प्रकार का कहा गया है यथा- १. गति नामगति नाम कर्म के उदय से प्राप्त होने वाली नरक तिर्यञ्च आदि पर्याय। २. जाति नाम- जिस कर्म के उदय से जीव एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय आदि कहे जायं उसको जाति कहते हैं। ३. शरीर नाम - जो उत्पत्ति समय से लेकर प्रतिक्षण जीर्णशीर्ण होता रहता है तथा शरीर नामकर्म के उदय से उत्पन्न होता है वह शरीर कहलाता है। ४. शरीर अङ्गोपाङ्ग नाम - शरीर के अङ्ग
और उपाङ्गों के रूप में पुद्गलों का परिणमन होना। ५. शरीर बन्धन नाम - जिस प्रकार लाख, गोंद आदि चिकने पदार्थों से दो चीजें आपस में जोड़ दी जाती हैं उसी प्रकार जिस नाम कर्म से प्रथम ग्रहण किये हुए शरीर के पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले शरीर के पुद्गल परस्पर बन्धन को प्राप्त होते हैं वह शरीर-बन्धन नाम कर्म कहा जाता है। ६. शरीर संघात नाम - पहले ग्रहण किये हुए शरीर के पुद्गलों को और वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले शरीर के पुद्गलों को एकत्रित कर व्यवस्थापूर्वक स्थापित कर देना संघात नाम कर्म है। ७. संहनन नाम - हड्डियों की रचना विशेष को संहनन कहते हैं। ८. संस्थान नाम- शरीर का आकार संस्थान कहलाता है। ९. वर्ण नाम - शरीर का काला नीला आदि वर्ण । १०. गन्ध नाम - शरीर की अच्छी या बुरी गन्ध । ११. रस नाम - कटु कषैला आदि रस १२. स्पर्श नाम:- शरीर का कोमल, रूक्ष आदि स्पर्श । १३. अगुरुलघु नाम - जिसके उदय से जीव का शरीर न लोहे जैसा भारी हो और न आक की रूई जैसा हल्का हो । १४. उपघात नाम - जिस कर्म के उदय से जीव अपने ही अवयवों से स्वयं क्लेश पाता है, जैसे प्रतिजिह्वा, चोर दांत, छठी अङ्गली सरीखे अवयवों से उनके स्वामी को ही कष्ट होता है। १४. पराघात नाम - जिसके उदय से जीव बलवानों के द्वारा भी पराजित न किया जा सके । १५. आनुपूर्वी नाम - जिस कर्म के उदय से जीव विग्रह गति से अपने उत्पत्ति स्थान पर पहुँचाया जाता है वह आनुपूर्वी नाम कर्म है। १६. उच्छ्वास नाम - जिससे श्वासोच्छ्वास लिया जाता है वह उच्छ्वास नाम कर्म है। १७. आतप नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर स्वयं उष्ण न होकर भी उष्ण प्रकाश करता है वह आतप नाम कर्म है, जैसे सूर्यमण्डल के बादर एकेन्द्रिय पृथ्वीकाय के जीवों का शरीर ठण्डा है परन्तु आतप नाम कर्म के उदय से वे उष्ण प्रकाश करते हैं। सूर्य मण्डल के बादर एकेन्द्रिय पृथ्वीकाय के जीवों के सिवाय अन्य जीवों के आतप नाम कर्म का उदय नहीं होता है। १८. उद्योत नाम -
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