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समवायांग सूत्र
उज्जोयणामे विहग गइणामे तसणामे थावरणामे सहमणामे बायरणामे पज्जत्तणामे अपजत्तणामे साहारणसरीरणामे पत्तेयसरीरणामे थिरणामे अथिरणामे सुभणामे असुभणामे सुभगणामे दुब्भगणामे सुसरणामे दुस्सरणामे आएजणामे अणाएजणामे जसोकित्तिणामे-अजसोकित्तिणामे णिम्माणणामे तित्थयरणामे । लवणे णं समुद्दे बायालीसं णागसाहस्सीओ अभिंतरियं वेलं धारंति । महालियाए णं विमाणपविभत्तीए बिइएवग्गे बायालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता। एगमेगाए ओसप्पिणीए पंचम छट्ठीओं समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ। एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढम बीयाओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ ॥ ४२ ॥
कठिन शब्दार्थ - बायालीसं - बयालीस, साहियाई - कुछ अधिक, सामण्णपरियागंश्रमण पर्याय का, पाउणित्ता - पालन करके, पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ - पश्चिम दिशा के बाहरी अंतिम प्रदेश से, गोथूभस्स आवास पव्वयस्स - गोस्तूभ आवास पर्वत के, अबाहाए अंतरे - व्यवधान की अपेक्षा अंतर, चउदिसिं पि - चारों दिशाओं में, सम्मुच्छिम भुयपरिसप्पाणं - सम्मूछिम भुजपरिसॉं की, सरीरंगोवंगणामे - शरीर अंगोपांग नाम, उवघायणामे - उपघात नाम, आयवणामे - आतपनाम, विहगगइणामे - विग्रहगति नाम या विहायोगति नाम, अणाएज णामे - अनादेय नाम, णिम्माण णामे- निर्माण नाम, अभितरियं वेलं - आभ्यन्तर वेल को, धारंति - धारण करते हैं अर्थात् रोक रखते हैं, महालियाए विमाणपविभत्तीए - महालिका विमान प्रविभक्ति नामक सूत्र के, पढम बीया समाओ - प्रथम द्वितीय-पहला और दूसरा दोनों आरों का समय (काल) मिला कर ।
भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी बयालीस वर्ष से कुछ अधिक श्रमण पर्याय का पालन करके सिद्ध हुए थे यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए थे। इस जम्बूद्वीप की जगती के पश्चिम दिशा में बाहरी अन्तिम प्रदेश से गोस्तूभ आवास पर्वत के पूर्व दिशा के अन्तिम प्रदेश का व्यवधान की अपेक्षा अन्तर बयालीस हजार योजन का कहा गया है। इस प्रकार चारों दिशाओं में कह देना चाहिए अर्थात् दक्षिण दिशा में जम्बूद्वीप की जगती से बयालीस हजार के अन्तर पर दगभास पर्वत है। पश्चिम में शंख पर्वत है और उत्तर दिशा में दगसीम पर्वत है। कालोदधि समुद्र में बयालीस चन्द्रमाओं ने गतकाल में प्रकाश किया था, वर्तमान काल में प्रकाश करते हैं और भविष्य काल में प्रकाश करेंगे । इसी प्रकार बयालीस सूर्य प्रकाशित हुए
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