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समवायांग सूत्र
उद्देसण काला पण्णत्ता। फग्गुणपुण्णिमासिणीए सूरिए चत्तालीसंगुलियं पोरिसीछायं णिव्वट्टइत्ता चारं चरइ एवं कत्तियाए वि पुण्णिमाए । महासुक्के कप्पे चत्तालीसं विमाणावास सहस्सा पण्णत्ता ॥ ४० ॥ _____ कठिन शब्दार्थ - मंदरचूलिया - मंदरचूलिका-मेरु पर्वत की चूलिका, चत्तालीसं - चालीस, संती अरहा - १६ वें तीर्थङ्कर श्री शांतिनाथ भगवान्, णाग रण्णो - नागकुमारों के राजा, भूयाणंदस्स - भूतानन्द के।
भावार्थ - बाईसवें तीर्थङ्कर श्री अरिष्टनेमि भगवान् के चालीस हजार आर्यिकाएँ थी। मेरु पर्वत की चूलिका चालीस योजन ऊंची है। सोलहवें तीर्थङ्कर श्री शान्तिनाथ भगवान् के शरीर की ऊंचाई चालीस धनुष थी। नागकुमारों के इन्द्र नागकुमारों के राजा भूतानन्द के चालीस लाख विमान कहे गये हैं। क्षुद्रिका विमान प्रविभक्ति नामक कालिक सूत्र के तीसरे वर्ग में चालीस उद्देशन काल कहे गये हैं। फाल्गुन पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा को पोरिसी की छाया चालीस अङ्गल की होती है। महाशुक्र नामक सातवें देवलोक में चालीस हजार विमान कहे गये हैं ॥ ४० ॥
विवेचन - 'वइसाहपुण्णिमासिणीए' ऐसा पाठ किसी प्रति में है किन्तु वह ठीक नहीं है। 'फग्गुणपुण्णिमासिणीए' यह पाठ ठीक है क्योंकि - "पोसे मासे चउप्पया" ऐसा कथन होने से पौष मास की पूर्णिमा को ४८ अङ्गुल पोरिसी छाया होती है तब माघ महीने में
और फाल्गुन महीने में चार चार अङ्गल कम करने से फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पोरिसी छाया चालीस अङ्गुल रह जाती है। इस प्रकार कार्तिक पूर्णिमा को भी समझना चाहिये।
इकतालीसवां समवाय णमिस्स णं अरहओ एक्कचत्तालीसं अजिया साहस्सीओ होत्था। चउसु पुढवीसु एक्कचत्तालीसं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता तंजहा - रयणप्पभाए पंकपभाए तमाए तमतमाए। महालियाए णं विमाणपविभत्तीए पढमे वग्गे एक्कचत्तालीसं उद्देसण काला पण्णत्ता ॥ ४१ ॥
कठिन शब्दार्थ - एक्कचत्तालीसं - इकतालीस, महालियाए विमाणपविभत्तीए - महालिका विमान प्रविभक्ति ।
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