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समवाय ४०
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१८५ WHATRAMMARIRATRAININowwnwromonanewwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwvie नरकावास हैं, चौथी में १० लाख, पांचवी में ३ लाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवीं में ५, इस प्रकार इन पांचों नरकों में कुल मिला कर उनचालीस लाख नरकावास हैं। ज्ञानावरणीय कर्म की ५ प्रकृतियाँ हैं, मोहनीय की २८, गोत्र की २, आयु कर्म की ४ प्रकृतियाँ हैं, इस प्रकार इन चार कर्मों की उनचालीस उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं ॥ ३९ ॥
विवेचन - 'आहोहिय' का अर्थ टीकाकार ने किया है कि - नियत क्षेत्र को विषय करने वाले अवधिज्ञानी मुनि थे। कुल पर्वत का अर्थ - जिस प्रकार लौकिक व्यवहार में कुल (जाति, कुल, कुटुम्ब आदि) मर्यादा बांधने वाले होते हैं इसी प्रकार क्षेत्र की मर्यादा करने वाले होने से इन पर्वतों को भी 'कुल पर्वत' कहा है। वे कुल पर्वत ३९ हैं। यथा - हिमवान् (चुलहिमवान्), महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी । ये कुल छह पर्वत जम्बूद्वीप में हैं इससे दुगुने अर्थात् बारह कुल पर्वत धातकी खण्ड में है। इसी प्रकार पुष्करार्द्ध में भी बारह कुल पर्वत हैं, ये तीस। जम्बूद्वीप में एक मेरु पर्वत है, धातकी खण्ड में दो और अर्द्ध पुष्कर में दो, इस प्रकार पांच मेरु पर्वत हैं। इनमें जम्बूद्वीप का पर्वत १ लाख योजन का ऊंचा है। शेष चारों मेरु पर्वत ८५००० - ८५००० योजन ऊंचे हैं। धातकी खण्ड के दो विभाग अर्थात् पूर्व धातकी खण्ड और पश्चिम धातकी खण्ड ऐसे दो विभाग करने वाले दो इषुकार (इषु का अर्थ है बाण, जो बाण की तरह एकदम सीधे हैं) पर्वत हैं इसी प्रकार पुष्करार्द्ध के भी दो विभाग करने वाले दो इषुकार पर्वत हैं। इस प्रकार ३०+५+४ ये ३९ कुल पर्वत हैं। ____ यहाँ मूल में 'समयक्षेत्र' शब्द दिया है जिसका अर्थ इस प्रकार है - सूर्य की गति से होने वाले. घडी, घण्टा, दिन, रात, पक्ष, मास, वर्ष, युग आदि समय की कल्पना भी इन्हीं क्षेत्रों में की जाती है इसलिये इन्हें 'समय क्षेत्र' भी कहते हैं। जम्बूद्वीप. धातकी खण्ड द्वीए
और पुष्करवर द्वीप का आधा भाग ये अढाई द्वीप हैं। इनमें मनुष्य रहते है। इनसे आगे के द्वीपों में मनुष्य नहीं है इसलिये इन अढाई द्वीप को 'मनुष्य क्षेत्र' भी कहा जाता है।
चालीसवां समवाय अरहओ णं अरिट्ठणेमिस्स चत्तालीसं अजिया साहस्सीओ होत्था। मंदरचूलिया णं चत्तालीसं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। संती अरहा चत्तालीसं धणूई उद्धं उच्चत्तेणं होत्था। भूयाणंदस्स णं णागकुमारिंदस्स णाग रण्णो चत्तालीसं भवणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तीए तइए वग्गे चत्तालीसं
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