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समवाय३३ womenmonsoommemesemomsammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmssessmammmmseneemes आशातना लगती है। १६. शिष्य अशन, पान, खादिम, स्वादिम गृहस्थ के घर से लाकर पहले शिष्य को एवं छोटे साधु को निमन्त्रित करे और रत्नाकर को पीछे निमन्त्रित करे तो शिष्य को आशातना लगती है। १७. शिष्य रत्नाकर के साथ अशन, पान, खादिम, स्वादिम गृहस्थ के घर से लाकर रत्नाकर को बिना पूछे ही जिसको चाहता है उसको वह आहार प्रचुर मात्रा में दे देता है तो शिष्य को आशातना लगती है। १८. शिष्य अशन, पान, खादिम, स्वादिम गृहस्थ के घर से लाकर रत्नाकर के साथ आहार करते हुए यदि प्रचुर मात्रा में खट्टे रस वाले शाक आदि को, रसादि गुणों से प्रधान सरस, मनोज्ञ, मनोहर- मन को प्रिय लगने वाला, घृतादि से स्निग्ध,रूक्ष- स्वादिष्ट लगने वाला पापड़ आदि को जल्दी-जल्दी खाने लगे तो शिष्य को आशातना लगती है। १९. यदि रत्नाकर शिष्य को बुलावे-आवाज दे, किन्तु शिष्य उनके वचनों को ध्यान पूर्वक न सुने तो शिष्य को आशातना लगती है। २०. रत्नाकर के बुलाने पर शिष्य यदि अपने स्थान पर बैठा हुआ ही उनके वाक्य को सुने किन्तु कार्य करने के भय से उनके पास न जावे तो शिष्य को आशातना लगती है। २१. रत्नाकर के बुलाने पर यदि शिष्य "क्या कहते हो" ऐसा कहे तो शिष्य को आशातना लगती है। २२. शिष्य रत्नाकर को यदि 'तू' कहता है तो शिष्य को आशातना लगती है। २३. शिष्य रत्नाकर को अत्यन्त कठोर और आवश्यकता से अधिक वाक्यों का प्रयोग करके पुकारे तो शिष्य को आशातना लगती है। २४. शिष्य रत्नाकर के वचनों से ही रत्नाकर का तिरस्कार करे तो शिष्य को आशातना लगती है। जैसे कि रत्नाकर कहे कि 'हे आर्य! तुम ग्लान साधुओं की सेवा क्यों नहीं करते? तुम आलसी हो'। रत्नाकर के ऐसा कहने पर यदि शिष्य उन्हीं के शब्दों को दोहराते हुए उन्हें कहे कि - तुम स्वयं ग्लान साधुओं की सेवा क्यों नहीं करते? तुम खुद आलसी हो तो शिष्य को आशातना लगती है। २५. रत्नाकर जब कथा कह रहे हों तब शिष्य यदि बीच ही में बोल उठे कि 'अमुक बात इस तरह है, अथवा अमुक पदार्थ का स्वरूप इस प्रकार है' तो शिष्य को आशातना लगती है। २६. रत्नाकर धर्मकथा कह रहे हों, उस समय शिष्य यदि कहे कि आपको याद नहीं है, आप भूल रहे हैं, यह बात इस तरह नहीं है तो शिष्य को आशातना लगती है। २७. रत्नाकर धर्मकथा कह रहे हों उस समय यदि शिष्य प्रसन्न चित्त न हो एवं उनके वचन एकाग्रचित्त से न सुने तो शिष्य को आशातना लगती है। २८. रत्नाकर धर्मकथा कह रहे हों उस समय यदि शिष्य कहे 'अब गोचरी का समय हो गया है, कथा समाप्त होनी चाहिए' इत्यादि कह कर सभा को छिन्न भिन्न करे तो शिष्य को आशातना लगती है। २९. रत्नाकर धर्मकथा कह रहे हों, उस समय यदि शिष्य किसी उपाय से कथा विच्छेद करे तो
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