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समवायांग सूत्र
पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। उवरिम उवरिम गेविजयाणं देवाणं जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा उवरिम मज्झिम गेविजएसु विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा तीसेहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति णीससंति वा। तेसिणं देवाणं तीसेहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पजइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तीसेहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति जाव सव्व दुक्खाणमंतं करिस्संति ॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - मोहणीय ठाणा - मोहनीय कर्म बांधने के स्थान, वारिमझे - वारिमध्य-जल में, विगाहिया - डाल कर, उदएण कम्मा - पानी के आघात से, महामोहं पकुव्वइ - महा मोहनीय कर्म बांधता है, तिव्वासुभ समायारे - तीव्र अशुभ परिणामों से युक्त होकर, सीसावेढेण आवेढेइ - किसी त्रस प्राणी के शिर पर गीला चमड़ा बांध कर उसे मार देता है। पाणिणं - प्राणियों के, सोयं - स्रोत-इन्द्रिय द्वारों को, पाणिणा - हाथ से, संपिहित्ता - ढक कर, आवरिय - सांस रोक कर, अंतो णदंतं - अन्दर घुर घुर शब्द करते हुए, ओभिया - मण्डप या बाड़े आदि स्थानों में घेर कर, जायतेयं - जाततेजस्चारों ओर अग्नि, समारब्भ - जला कर, अंतो धूमेण - धुंए से दम घोट कर, चेयसा - किसी को मारने के लिए दुष्ट भाव से, उत्तमंगम्मि सीसम्मि - उत्तम अंग मस्तक पर, पहणइ - शस्त्रों से प्रहार करता है, मत्थयं - मस्तक को, विभज्ज - विदारण करके, फाले - फोड़ देता है, पणिहिए - अनेक प्रकार के वेष धारण करके, हरित्ता - हरण करके उवहसे - हंसता है, गूढायारी - गूढाचारी-गुप्त रूप से अनाचारों का सेवन करने वाला, णिगूहिज्जा - कपट पूर्वक छिपाता है, छायए - ढकता है, णिहाई - मूल गुण
और उत्तर गुण में लगे दोषों को छिपाता है अथवा सूत्रों के वास्तविक अर्थ को छिपाकर मनमाना आगमविरुद्ध अर्थ करता है, अभूएणं धंसेइ - निर्दोष व्यक्ति पर झूठे दोषों का आरोप करता है, अकम्मं अत्तकम्मुणा - अपने किये हुए दुष्ट कार्य दूसरों के सिर मढता है, तुममकासि - यह पाप तुमने किया है, सच्चामोसाणि - सत्यामृषा-मिश्रभाषा बोलता है, अक्खीणझंझे - कलह को शान्त न करके सदा बनाये रखता है, णय - नयमान्-नीतिमान् राजा का मंत्री, अणागयस्स - अनायक अर्थात् जिसके ऊपर कोई नायक (राजा) न हो यानी चक्रवर्ती का, धंसिया - नाश करके, विक्खोभइत्ताणं - क्षुब्ध कर के, पडिलोमाहि
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