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समवायांग सूत्र
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अग्नि जला देता है और धूएं से दम घोट कर निर्दयता पूर्वक मार देता है। क्रूर अध्यवसाय वाला वह दुरात्मा महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है ॥ ४ ॥
५. जो व्यक्ति किसी प्राणी को मारने के लिए दुष्ट भाव से शरीर में सब से उत्तम (प्रधान) अङ्ग मस्तक पर तलवार, मुद्गर आदि शस्त्रों से प्रहार करता है। प्रकृष्ट प्रहार द्वारा मस्तक को विदारण करके फोड़ देता है। वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है ॥ ५ ॥
६. जो धूर्त अनेक प्रकार के वेष धारण करके मार्ग में जाते हुए पथिकों को धोखा देता है। उन्हें निर्जन स्थान में ले जाकर योग भावित फल को खिला कर मारता है अथवा लाठी आदि के प्रहार से उनके प्राणों का विनाश करता है और उनके धन का हरण करके हंसता है अर्थात् अपनी धूर्तता पूर्ण सफलता पर प्रसन्न होता है, वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है॥६॥
७. जो व्यक्ति गुप्त रीति से अनाचारों का सेवन करता है और कपट पूर्वक उन्हें छिपाता है। अपनी एक माया को दूसरी माया से ढकता है। असत्यवादी यानी दूसरों के प्रश्न का झूठा उत्तर देता है। मूलगुण और उत्तरगुण में लगे हुए दोषों को छिपाता है अथवा सूत्रों के वास्तविक अर्थ को छिपा कर अपनी इच्छानुसार आगम विरुद्ध अर्थ करता है, वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है ॥ ७ ॥
८. जो व्यक्ति निर्दोष व्यक्ति पर झूठे दोषों का आरोप करता है और अपने किये हुए दुष्ट कार्य उसके सिर मढता है अथवा अमुक ने पापाचरण किया है यह जानते हुए भी 'यह पाप तुमने किया हैं' ऐसा बोलता है, वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है ॥ ८ ॥
९. जो व्यक्ति यथार्थता को जानते हुए भी सभा में अथवा बहुत से लोगों के बीच में मिश्र भाषा का प्रयोग करता है यानी थोड़ा सत्य और बहुत झूठ बोलता है, कलह को शान्त न करके सदा बनाये रखता है, वह पुरुष महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है।। ९ ॥
१०. नयमान् अर्थात् किसी राजा का मन्त्री राजा की रानियों का अथवा राज्य लक्ष्मी का विनाश करके राजा की भोगोपभोग सामग्री का नाश करता है। सामन्त वगैरह. लोगों में भेद डाल कर राजा को क्षुब्ध कर देता है और राजा को राजगद्दी से हटा कर स्वयं राज्य का उपभोग करता है। यदि मन्त्री को अनुकूल करने के लिए राजा उसके पास आकर अनुनय विनय करता है तो दुर्वचन कह कर वह उसका अपमान करता है और उसे भोगोपभोग की सामग्री से वञ्चित कर देता है। इस प्रकार कृतघ्नता पूर्ण व्यवहार करने वाला विश्वासघाती मन्त्री महामोहनीय कर्म बांधता है।। १०-११ ॥
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