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समवायांग सूत्र maaaaaaaaaaa0000000mamaeeeeaamananeeeee
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शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र ६. स्वर शास्त्र - जीव और अजीव के स्वरों का शुभाशुभ फल बतलाने शास्त्र ७. व्यञ्जन शास्त्र - शरीर के तिल, मष आदि के शुभाशुभ फल बतलाने वाला शास्त्र। ८. लक्षण शास्त्र - स्त्री पुरुषों के लांछनादि रूप विविध लक्षणों का शुभाशुभ फल बतलाने वाला शास्त्र । इन आठों के सूत्र, वृत्ति और वार्तिक के भेद से २४ भेद हो जाते हैं। २५ विकथानुयोग - अर्थ और काम के उपायों को बतलाने वाला शास्त्र । २६ विदयानुयोगरोहिणी आदि विदयाओं की सिद्धि के उपाय बताने वाला शास्त्र । २७. मन्त्रानुयोग - मन्त्रों द्वारा सर्प आदि को वश में करने का उपाय बतलाने वाला शास्त्र । २८. योगानुयोग - वशीकरण आदि योग बतलाने वाले हरमेखला आदि शास्त्र २९. अन्य तीर्थिक प्रवृत्तानुयोग - अन्य तीर्थयों द्वारा माने हुए वस्तु तत्त्व का जिसमें प्रतिपादन किया गया हो वह अन्य तीर्थिक प्रवृत्तानुयोग कहलाता है। आषाढ, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख ये छह महीने उनतीस रात दिन के कहे गये हैं। चन्द्रदिन यानी प्रतिपदा आदि तिथि उनतीस मुहूर्त से कुछ अधिक कही गई है। प्रशस्त - शुभ अध्यवसाय वाला भव्य समदृष्टि जीव तीर्थङ्कर नाम सहित नामकर्म की नियमा - निश्चित रूप से उनतीस उत्तर प्रकृतियाँ यानी २८ वें समवाय में . कही हुई २८ प्रकृतियों और १ तीर्थङ्कर नाम, इन उनतीस प्रकृतियों का बन्ध कर वैमानिक देवों में देव रूप से उत्पन्न होता है। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति उनतीस पल्योपम की कही गई है। तमस्तमा नामक सातवीं नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति उनतीस सागरोपम की कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान नाम पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम की कही गई है। उपरिम मध्यम नामक आठवें ग्रैवेयक विमान के देवों की जघन्य स्थिति उनतीस सागरोपम की कही गई हैं। जो देव उपरिम अधस्तन नामक सातवें ग्रैवेयक विमान में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति उनतीस सागरोपम की कही गई है। वे देव उनतीस पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को उनतीस हजार वर्षों से आहार की इच्छा पैदा होती है। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो उनतीस भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ २९ ॥ "
विवेचन - मूल में २९ पाप सूत्रों के नाम कहे गये हैं। भावार्थ में उनका संक्षिप्त अर्थ बतला दिया गया है। पाप उपादान के हेतु भूत अर्थात् पाप आगमन के कारण भूत श्रुत को पापश्रुत कहते हैं। क्योंकि इनसे प्राणातिपात आदि कार्यों में वृद्धि होती है।
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