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समवायांग सूत्र
आसाढ-बहुलपक्खे, भहवए कत्तिए य पोसे य। .
फग्गुण-वइसाहेसु य, बोद्धव्वा ओमरत्ताओ ॥ १५ ॥ अर्थ - आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख इन सब महीनों के कृष्णपक्ष में एक-एक तिथि घटती है ऐसा जानना चाहिये अर्थात् उपरोक्त महीनों के कृष्ण पक्ष १४ दिन का होता है। अतः महीना २९ दिन का होता है।
शुभ अध्यवसाय वाला जीव जो वैमानिक में उत्पन्न होने वला है उसके नाम कर्म की. २९ प्रकृतियों का बन्ध होता है। २८ प्रकृतियाँ तो २८ वें समवाय में बताई है यहाँ 'तीर्थङ्कर' नामकर्म प्रकृति अधिक समझनी चाहिए।
प्रश्न - सूत्र, वृत्ति और वार्तिक किसे कहते हैं ? उत्तर - सूत्र का लक्षण इस प्रकार है - ___ अल्पाक्षरमसंदिग्धं, सारवद् गूढनिर्णयम् (विश्वतोमुखम् )।
अस्तोभमनवद्यं च, सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥ अर्थ - जिसमें शब्द थोड़े हों और अर्थ बहुत हो, सन्देह रहित हो, सार युक्त हो, स्पष्ट निर्णय वाला हो अथवा चारों तरफ के अर्थों से युक्त हो। बहुत विस्तार वाला न हो तथा सूत्र के सभी दोषों से वर्जित हो, उसे सूत्र कहते हैं।
प्रश्न - वृत्ति किसे कहते हैं ? उत्तर - सूत्र का अर्थ जिसमें कहा गया हो उसे वृत्ति कहते हैं। प्रश्न - वार्तिक किसे कहते हैं ? उत्तर - वृत्ति की विशेष व्याख्या को वार्तिक कहते हैं।
टीकाकार ने लिखा है - अङ्ग सूत्रों को छोड़ कर शेष १००० प्रमाण सूत्र है, एक लाख प्रमाण वृत्ति है और एक करोड़ प्रमाण वार्तिक हैं। अङ्गों का तो एक लाख प्रमाण सूत्र, एक करोड प्रमाण वृत्ति है तथा वार्तिक तो अपरिमित है।
तीसवां समवाय तीसं मोहणीय ठाणा पण्णत्ता तंजहा -
जे यावि तसे पाणे, वारिमझे विगाहिया। - उदएण कम्मा मारेइ, महामोहं पकुव्वइ ॥ १ ॥
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