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जैन सिद्धान्त में संवत्सर के पांच भेद किये गये हैं । यथा नक्षत्र मास, चन्द्र मास, ऋतु मास, आदित्य मास और अभिवर्द्धित मास ।
१. नक्षत्र संवत्सर - चन्द्रमा का अट्ठाईस नक्षत्रों में रहने का काल नक्षत्र मास कहलाता है । बारह नक्षत्र मासों का एक नक्षत्र संवत्सर होता है। नक्षत्र मास २१ दिन का होता है।
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ऐसे बारह मास अर्थात् ३२७ ११ दिनों का एक नक्षत्र संवत्सर होता है।
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२. चन्द्र संवत्सर - कृष्ण प्रतिपदा से प्रारम्भ करके पूर्णमासी को समाप्त होने वाला १२ दिनों का एक चन्द्र
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२९ ३२ दिन का चन्द्रमास कहलाता है। बारह चन्द्रमास अर्थात् संवत्सर होता है ।
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समवाय २९
३. ऋतु संवत्सर ६० दिन की एक ऋतु होती है अतः ऋतु के आधे भाग को ऋतुमास कहते हैं। श्रावण मास और कर्म मास ऋतुमास के ही पर्यायवाची शब्द हैं। ऋतुमास ३० दिन का होता है। बारह ऋतुमास अर्थात् ३६० दिनों का एक ऋतु संवत्सर होता है । तपस्या में और प्रायश्चित्त में ऋतुमास से ही गिनती की जाती है। ऐसा निशीथ सूत्र के २० वें उद्देशक में स्पष्ट निर्देश किया गया है 1
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४. आदित्य (सूर्य) संवत्सर - आदित्य (सूर्य) १८३ दिन दक्षिणायन में और १८३ दिन उत्तरायन में रहता है। इस प्रकार ३६६ दिनों का वर्ष आदित्य संवत्सर कहलाता है अथवा सूर्य के २८ नक्षत्र और बारह राशि के भोग का काल आदित्य संवत्सर कहलाता है। सूर्य ३६६
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दिनों में उक्त नक्षत्र और राशियों का भोग करता है। आदित्य मास १० ÷ दिन का होता है।
५. अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह चन्द्रमास का संवत्सर अभिवर्द्धित संवत्सर कहलाता है । चन्द्र संवत्सर में एक मास अधिक होने से यह संवत्सर अभिवर्द्धित संवत्सर कहलाता है।
दिन का अभिवर्द्धित
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दिनों का एक अभिवर्द्धित मास होता है अर्थात् ३८३ - संवत्सर होता है 1
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आषाढ़ मास रात दिन की गणना की अपेक्षा २९ रात दिन का कहा गया है। इसी प्रकार भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख मास भी २९ - २९ रात दिन के कहे गये हैं। चन्द्र दिन मुहूर्त्त गणना की अपेक्षा कुछ अधिक २९ मुहूर्त्त का कहा गया है। उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वें अध्ययन में कहा गया है।
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