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समवायांग सू
अवग्रह
वज्जणया
भाजन भोजन अर्थात् चौड़े मुंह वाले पात्र में भोजन, अणुवीइ भासणया अनुवीचि, भाषणता विचार कर बोलना, कोह-विवेगे क्रोधविवेक - क्रोधत्याग, हासविवेगे हास्यविवेक - हास्य त्याग, उग्गहअणुण्णवणया अनुज्ञापनता मकान आदि में ठहरने के लिये उसके स्वामी की आज्ञा लेना, उग्गहसीम जाणणया अवग्रह सीमा ज्ञापनता उपाश्रय की सीमा खोल कर आज्ञा लेना, साहम्मिय उग्गहं अणुण्णविय परिभुंजणया - साधर्मिकावग्रह अनुज्ञाप्य परिभोजनता - संभोगी साधुओ को उपाश्रय की सीमा बतला कर उसे भोगना अर्थात् काम में लेना, साहारण भत्तपाणं- साधारण भक्तपानलाये हुए आहार पानी को अणुण्णवियपरिभुंजणया - गुरु महाराज या अपने से बड़े साधु को दिखला कर तथा उनकी आज्ञा लेकर भोगना, इत्थीपसु-पंडगसंसत्तग सयणासण स्त्री पशु, नपुंसक युक्त शयन और आसन का त्याग करना, इत्थी कहा विवज्जणया - स्त्री कथा विवर्जनता - स्त्री कथा का त्याग, इत्थीणं इंदियाणमालोयण वज्जणया स्त्रियों के नाक कान आदि इन्द्रियों को विकार दृष्टि से नहीं देखना, पुव्वरयपुव्यकीलियाणं अणणुसरणया पूर्वरत पूर्वक्रीडित अननुस्मरणता - पूर्व में भोगे हुए काम भोगों को स्मरण न करना, पणीयाहार विवज्जणया प्रणीताहारविवर्जनता - प्रणीत आहार का त्याग करना, सोइंदिय रागोवरई - श्रोत्रेन्द्रिय रागोपरति - श्रोत्रेन्द्रिय के विषयों में राग न करना, दीहवेयड्ड पव्वया दीर्घ वैताढ्य पर्वत, उव्वेहेणं - उद्वेध - ऊंडा (गहरा ) सत्थपरिणा शस्त्र परिज्ञा, लोगविजओ - लोक विजय, सीयोसणीयं - शीतोष्णीय, सम्मत्तं सम्यक्त्व, विमोह - विमोक्ष, उवहाणसुयं उपधान श्रुत, महापरिण्णा महापरिज्ञा, सिज्ज - शय्या, पाएसा पात्रैषणा, उग्गहपडिमा - अवग्रह प्रतिमा, सत्तिक्क सत्तया सात सत्तिक्कया, संकिलिट्ठ परिणामे संक्लिष्ट परिणाम वाला, घडमुहपवित्तिएणंघटमुख प्रवृत्त - घडे के मुख के आकार, मुत्तावलिहार संठिएणं- मुक्तावलीहार संस्थित - मुक्तावली हार के संस्थान वाले, पवाएण प्रपात से, पडंति गिरती हैं, मकरमुहपवित्तिएणंमकरमुख प्रवृत्त-मकर के मुखाकार वाले ।
भावार्थ भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र के उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थङ्कर और अन्तिम तीर्थङ्कर के शासन में पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएं कही गई हैं,
ये हैं १. ईर्यासमिति - देख कर यतना पूर्वक गमनागमनादि क्रिया करना २. मनोगुप्ति -
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मन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना ३. वचनगुप्ति वचन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना ४. आलोकित भाजन भोजन सदा विवेक पूर्वक देख कर चौड़े मुख वाले पात्र में आहार
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