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समवायांग सूत्र
कठिन शब्दार्थ - ओरालिए काम भोगे - औदारिक शरीर संबंधी काम भोगों को, दिव्वे - देव संबंधी, सखुड्डय वियत्ताणं बालक से लेकर वृद्ध तक, अट्ठारस ठाणाअठारह पालन करने योग्य स्थान, वयछक्कं - छह व्रत, कायछक्कं - छह काय, अकप्पोअकल्प्य त्याग, गिहिभायणं - गृहस्थ के बर्तनों में आहार पानी न करे तथा उन्हें कपड़े धोने आदि के काम में नहीं लें । पलियंक - पर्यङ्क, णिसिज्जा- निषदया, सिणाणं - स्नान त्याग, सोहवजणं शोभावर्जन, सचूलियागस्स - चूलिका सहित, पयग्गेणं पदाग्र- प्रत्येक पद के, बंभी - ब्राह्मी, लिविए- लिपि के, लेखविहाणे - लेख विधानलिखने के तरीके |
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भावार्थ अठारह प्रकार का ब्रह्मचर्य कहा गहा है । यथा १. औदारिक शरीर सम्बन्धी यानी मनुष्य तिर्यञ्च सम्बन्धी कामभोगों को स्वयं मन से सेवन न करे। २. दूसरों को मन से सेवन न करावे और ३. मन से सेवन करते हुए दूसरों को अच्छा भी न जाने । ४. औदारिक शरीर सम्बन्धी कामभोगों को स्वयं वचन से सेवन न करे । ५. दूसरों को वंचन से सेवन न करावे । ६. वचन से सेवन करते हुए दूसरों की अनुमोदना भी न करे । ७. औदारिक शरीर सम्बन्धी कामभोगों को स्वयं काया से सेवन न करे। ८. दूसरों को काया से सेवन न करावे ९. काया से सेवन करते हुए दूसरों की अनुमोदना भी न करे । १०. दिव्य अर्थात् देव सम्बन्धी काम भोगों को स्वयं मन से सेवन न करे । ११. दूसरों को मन से सेवन न करावे १२. मन से सेवन करते हुए दूसरों की अनुमोदना भी न करे। १३. दिव्य कामभोगों को स्वयं वचन से सेवन न करे। १४. दूसरों को वचन से सेवन न करावे । १५. वचन से सेवन करते हुए दूसरों की अनुमोदना भी न करे । १६. दिव्य काम भोगों को स्वयं काया से सेवन न करे । १७. दूसरों को काया से सेवन न करावे । १८. काया से सेवन करते हुए दूसरों की अनुमोदना भी न करे ।
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बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमिनाथ स्वामी के अठारह हजार साधुओं की उत्कृष्ट श्रमण सम्पदा थी । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने बालक से लेकर वृद्ध तक सभी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अठारह स्थान पालन करने योग्य कहे हैं। वे इस प्रकार हैं. १-६ छह व्रत यानी प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह और रात्रिभोजन का सर्वथा त्याग करना । ७-१२ छह काय अर्थात् पृथ्वीकाय अप्काय तेउकाय वायुकाय वनस्पतिकाय और त्रसकाय इन छह कायों के आरम्भ का सर्वथा त्याग करना । १३. अकप्पो - अकल्पनीय आहार पानी वस्त्र पात्र आदि को ग्रहण न करे १४. गृहस्थ के बर्तनों में आहार पानी न करे तथा उन्हें कपड़े
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