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समवाय २३
अहइज्जं - आर्द्रकीय, णालंदइजं - नालन्दीय, सूरुग्गमणमुहुत्तंसि - सूर्योदय के समय, एक्कारसंगिणो - ग्यारह अंग के पारगामी, कोसलिए - कौशल देश में उत्पन्न, मंडलियरायाणो - माण्डलिक राजा, हेट्ठिम मज्झिम गेविनगाणं - अधस्तन मध्यम यानी दूसरे ग्रैवेयक विमान में देवों की, हेट्ठिम हेट्ठिम गेविजविमाणेसु - अधस्तन अधस्तन यानी पहले ग्रैवेयक के विमानों में ।
भावार्थ - सूयगडांग (सूत्रकृताङ्ग) सूत्र के दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं और दूसरे श्रुतस्कन्ध में सात अध्ययन हैं। दोनों श्रुतस्कन्धों को मिला कर कुल तेईस अध्ययन हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - १. समय २. वैतालीय ३. उपसर्ग परिज्ञा ४. स्त्रीपरिज्ञा ५. नरक विभक्ति ६. महावीर स्तुति ७. कुशील परिभाषा ८. वीर्य ९. धर्म .१०. समाधि ११. मोक्षमार्ग १२. समवसरण १३. याथातथ्य १४. ग्रन्थ १५. यमक १६. गाथा १७. पुण्डरीक १८. क्रिया स्थान १९. आहार परिज्ञा २०. अप्रत्याख्यान क्रिया २१. अनगारश्रुत २२. आर्द्रक २३. नालन्दीय। इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में भगवान् ऋषभदेव स्वामी से लेकर भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी तक तेईस तीर्थङ्करों को सूर्योदय के समय केवलज्ञान केवल दर्शन उत्पन्न हुआ था और भगवान् महावीर स्वामी को चौथे पहर में उत्पन्न हुआ था। इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में तेईस तीर्थङ्कर पूर्वभव में ग्यारह अङ्ग के पारगामी थे। यथा - अजित नाथ, सम्भव नाथ, अभिनन्दन स्वामी, सुमतिनाथ स्वामी यावत् पार्श्वनाथ स्वामी और वर्द्धमान स्वामी। कौशल देश में उत्पन्न भगवान् ऋषभदेव स्वामी पूर्व भव. में चौदह पूर्व के धारक थे। इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में तेईस तीर्थङ्कर पूर्वभव में माण्डलिक राजा थे। यथा - अजितनाथ सम्भवनाथ अभिनन्दन स्वामी यावत् पार्श्वनाथ स्वामी और वर्द्धमान स्वामी। कौशल में उत्पन्न भगवान् ऋषभदेव स्वामी पूर्वभव में चक्रवर्ती थे। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति तेईस पल्योपम की कही गई है। महातम प्रभा नामक सातवीं नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति तेईस सागरोपम की कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति तेईस पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति तेईस पल्योपम की कही गई है। अधस्तन मध्यामा यानी दूसरे ग्रैवेयक में देवों की जघन्य स्थिति तेईस सागरोपम की कही गई है। जो देव अधस्तरआधस्बन यानी पहले ग्रैवेयक के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं। उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेईस सागरोपम की कही गई है। वे देव तेईस पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और
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