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समवायांग सूत्र
INTATI
बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को तेईस हजार वर्षों से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो तेईस भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ २३ ॥
विवेचन - तेईस तीर्थङ्करों को सूर्योदय के समय केवलज्ञान हुआ। ऐसा बतलाया गया है। प्रश्न होता है - भगवान् मल्लिनाथ को केवलज्ञान कब हुआ? भगवान् मल्लिनाथ का वर्णन ज्ञातासूत्र के आठवें अध्ययन में हैं। पहले समय के विभाग को जान लेना आवश्यक है। दिन के और रात्रि के चार-चार प्रहर होते हैं। किन्तु दूसरी जगह दिन के दो विभाग और रात्रि के भी दो विभाग किये हैं जिनको क्रमशः पूर्वाह्न और अपराह्न तथा पूर्वरात्र और अपररात्र कहते हैं। भगवान् मल्लिनाथ की दीक्षा का समय 'पुव्वण्हकाल समयंसि' लिखा है - जिसका अर्थ 'दिन के पहले भाग में।' जिस दिन मल्लिनाथ भगवान् की दीक्षा हुई उसी दिन उन्हें केवलज्ञान भी हुआ। केवलज्ञान का समय लिखा है - "पुव्वावरण्हकाल समयंसि" पूर्वाह्न का अर्थ है दिन का पूर्वभाग और अपराह्न (दिन का पिछला भाग)। तात्पर्य यह निकला कि - दिन के पूर्व भाग और पिछले भाग दोनों का सन्धि काल (मिश्रण काल) में अर्थात् दिन के बारह और एक बजे के बीच के समय में केवलज्ञान हुआ। इसलिये शास्त्रकार ने उसको सूर्य उद्गमन काल कह दिया है। इसलिये परस्पर किसी प्रकार का विरोध नहीं है।
भगवान् ऋषभदेव का जीव पूर्वभव में जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में पुंडरीकिणी नगरी में वज्रसेन राजा के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ था। उनका नाम वज्रनाभ रखा गया। वज्रसेन तीर्थङ्कर थे इसलिये यथा समय उन्होंने दीक्षा लेकर धर्म तीर्थ प्रवर्ताया। वज्रनाभ राजा बने। उनके यहाँ चक्र रत्न की उत्पत्ति हुई इसलिये छह खण्ड साध कर चक्रवर्ती बने। फिर चक्रवर्ती पद को छोड़कर दीक्षा ली । बीस बोलों की उत्कृष्ट आराधना करके तीर्थङ्कर गोत्र बान्धा। श्रुतज्ञान की भी उत्कृष्ट आराधना की अतएव वे १४ पूर्वधारी बने। वहाँ से सर्वार्थसिद्ध में जाकर, वहाँ से च्यव कर यहाँ भरत क्षेत्र में प्रथम तीर्थङ्कर बने। शेष तेईस तीर्थङ्कर पूर्व भव में माण्डलिक राजा थे। दीक्षा लेकर ग्यारह अङ्ग के पाठी बने। निष्कर्ष यह है कि ऋषभदेव का जीव पूर्व भव में चौदह पूर्वी था शेष २३ तीर्थङ्करों के जीव ११ अंगी थे।
_ नवग्रैवेयक विमान के तीन विभाग करने पर तीन त्रिक कहलाता है। उनके नाम इस प्रकार हैं -
पहली त्रिक के तीन विभाग - १. अधस्तन अधस्तन २. अधस्तन मध्यम ३. अधस्तन उपरितन ।
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