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___समवायांग सूत्र
दूसमदूसमा य। एगमेगाए णं उस्सप्पिणीए पढम बितियाओ समाओ एक्कवीसं एक्कवीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ता तंजहा- दूसमदूसमाए दूसमाए य। इमीसें णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं एक्कवीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं एक्कवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एगवीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। आरणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। अच्चुए कप्पे देवाणं जहण्णेणं एगवीसं सागरोवसाई ठिई पण्णत्ता। जे देवा सिरिवच्छं सिरिदामगंडं मल्लं किट्ट चावोण्णयं अरण्णवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा एक्कवीसाए अद्धमासाणं (अद्धमासेहिं) आणमंति वा पाणमंति वा ऊसंसति वा णीससंति वा। तेसिणं देवाणं एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पजइ । संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एक्कवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥ २१ ॥ ___ कठिन शब्दार्थ - सबला - शबल दोष, हत्थकम्मं करेमाणे - हस्तकर्म करना, मेहुणं पडिसेवेमाणे - मैथुन सेवन करना, सागारियपिंड - सागारिक पिण्ड - शय्यातर के घर से आहार आदि लेना, उद्देसियं - औदेशिक, कीयं - क्रीत - साधु के निमित्त खरीदा हुआ, गणाओ गणं - एक गण को छोड़ कर दूसरे गण में, दगलेवे करेमाणे - उदक लेप करना अर्थात् नदी उतरना, माइठाणे - माया स्थान का, आउट्टियाए - जानबूझ कर, जीवपइट्ठिए - जीवों वाले स्थान पर, मूल भोयणं - मूल का भोजन, कंदभोयणं - कंद का भोजन, तयाभोयणं - त्वचा - छाल का भोजन, पवालभोयणं - प्रवाल का भोजन, हरियभोयणं - हरीकाय का भोजन, सीओदगवियडवग्धारिय पाणिणा - सचित्त जल वाले हाथ आदि से, खवियसत्तयस्स - सात प्रकृतियों का क्षय करने वाले, संतकम्मा - सत्ता में रहती है, अपच्चक्खाण - अप्रत्याख्यान, पच्चक्खाणावरण - प्रत्याख्यानावरण, संजलण - संज्वलन। __ भावार्थ - शबल - जिन कार्यों से चारित्र की निर्मलता नष्ट हो जाती है, उसमें मैल लग जाता है उन्हें 'शबल' दोष कहते हैं। वे इक्कीस हैं - १. हस्तकर्म करना शबल दोष
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