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समवायांग सूत्र
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की सेवा करना। १०. समवसरण - व्याख्यान आदि के समय एक जगह बैठना तथा एक ही मकान में साथ ठहरना। ११. सन्निषदया - आसन आदि देना, एक आसन पर बैठना। १२. कथा प्रबन्ध - एक जगह बैठ कर कथा वार्ता करना, शास्त्रचर्चा करना। ये साधुओं के बारह सम्भोग हैं। कृतिकर्म यानी वन्दना नामक तीसरे आवश्यक के बारह आवर्तन कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १-२ यथाजात यानी जन्मते हुए बालक की तरह घुटनों के बीच में दोनों हाथों को जोड़ कर दो बार नमस्कार करना। ३-६ चार शिर अर्थात् दो वक्त खमासमणा देने से चार वक्त गरु के चरणों में शिर नमावें । ७-९ त्रिगुप्त यानी मन वचन काया को गोप कर रखना। १०-११ दो वक्त अवग्रह में प्रवेश करना और १२ एक वक्त बाहर निकलना। खमासमणा देने की विधि यह है - दो वक्त इच्छामि खमासमणो का पाठ बोले । जब "निसिहियाए" शब्द आवे तब दोनों गोड़े खड़े करके दोनों हाथ जोड़ कर बैठे फिर १ अहो, ३ का यं,३ का य, ये तीन आवर्तन करे। इसी तरह ४ जत्ता भे, ५ जव णि, ६ जं च भे, ये तीन आवर्तन करे। इस प्रकार एक पाठ में ६ आवर्तन करें। जहाँ. 'तित्तीसण्णयराए' शब्द आवे वहाँ खड़ा हो जावे और पाठ समाप्त करे। इसी प्रकार दूसरी वक्त खमासमणो का पाठ बोलते वक्त फिर ६ आवर्तन करे और 'तित्तीसण्णयराए' शब्द आवे वहाँ खड़ा न होवे किन्तु बैठा बैठा ही पाठ समाप्त करे। इस प्रकार खमासमणो के १२ आवर्तन होते हैं। इस जम्बूद्वीप के पूर्व द्वार के स्वामी, एक पल्योपम की स्थिति वाले विजय देव की विजया राजधानी बारह लाख योजन की लम्बी चौड़ी है। नवमा राम बलदेव (कृष्ण वासुदेव का भाई) बारह सौ वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोग कर पांचवें ब्रह्मलोक देवलोक में उत्पन्न हुए । मेरु पर्वत की चूलिका मूल में बारह योजन की चौड़ी कही गई है। इस जम्बूद्वीप की वेदिका मूल में बारह योजन चौड़ी कही गई है। सब से छोटी रात्रि आषाढ़ पूर्णिमा की होती है। वह बारह मुहूर्त की होती है। इसी तरह पौष पूर्णिमा का दिन भी सब से छोटा होता है। वह बारह मुहूर्त का होता है। सर्वार्थसिद्ध महाविमान की ऊपर की चूलिका के अग्रभाग से बारह योजन ऊपर जाने पर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी आती है। ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के बारह नाम कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. ईषत्, २. ईषत्प्रागभारा, ३. तन्वी, ४. तनुतरा, ५. सिद्धि, ६. सिद्धालय, ७. मुक्ति, ८. मुक्तालय, ९. ब्रह्म, १०. ब्रह्मावतंसक, ११. लोक प्रतिपूर्ण, १२. लोकाग्र चूलिका । इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति बारह पल्योपम की कही गई है। धूमप्रभा नामक पांचवीं नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति बारह सागरोपम की कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति
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